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________________ ३२३ मरु-गुर्जर जैन साहित्य या स्थानकवासी सम्प्रदाय विकसित हुए जिनमें अनेक उच्च कोटि के ऋषि, साधक और लेखक-विद्वान् आदि हुए हैं। .. ___ लोकागच्छ की तीन प्रसिद्ध शाखायें -नागौरी, गुजराती और उत्तराधी कही जाती हैं। उत्तराधी शाखा के कई कवि पंजाब में हो गये हैं। इनमें से मेघ कवि कृत मेघ विनोद प्रसिद्ध रचना है। नागोरी गच्छ के शास्त्र-भण्डार सुजानगढ़ से भी रचनायें प्राप्त हो सकती हैं। व्यापार व्यवसाय की दष्टि से बंगाल विशेषतया कलकत्ता में बसे ओसवाल श्रावक तथा भ्रमणशील लोकागच्छी यतियों के चौमासा निवास आदि के कारण बंगाल (कलकत्ता, अजीमगंज आदि स्थानों) में भी जैन साहित्य की प्राप्ति संभव है। इन स्थानों पर खोज करने की आवश्यकता है। तेरहपंथी या तेरापंथी सम्प्रदाय सं० १८१७ में आचार्य भिक्षु या भीखाजी ने चलाया। स्वामी दयानन्द के आर्यसमाज के समान यह भी सुधारवादी समाज है। इनकी तीन विशेषतायें हैं (१) एक आचार्य, (२) समान आचार और (३) समान विचार। इसमें पहले केवल ६ साधु थे। इनका विशेष जोर संख्या पर नहीं बल्कि शुद्धि पर है। आज तो इनकी भी संख्या हजारों हो गई है। यह प्रभु का पंथ है अतः इसे तेरापंथ कहते हैं । ये लोग केवल ३२ आगमों को प्रमाण मानते हैं। तेरापंथ के ९वें आचार्य तुलसी ने सं० २००५ में सरदारनगर से अणुब्रत आन्दोलन चलाया जो संयम की न्यूनतम साधना का आन्दोलन है। इस प्रकार यह शताब्दी धर्म में क्रान्ति और अनेक मत सम्प्रदायों के प्रवर्तन तथा सुधार की शताब्दी है। इस शताब्दी में अनेक सुधारवादी आन्दोलन राजस्थान, गुजरात और हिन्दी प्रदेश की जनता के जनमानस को आन्दोलित कर रहे थे । लोकागच्छ और स्थानकवासी परम्परा का जैन धर्म और समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ा और इस परम्परा के विद्वानों ने मरुगुर्जर जैन साहित्य के विकास में बडा योगदान किया है । इसमें शताधिक कवि और शास्त्रज्ञ हो गये हैं । स्थानकवासी परम्परा की मुख्य बाईस शाखायें होने से यह 'वाइस टोला' के नाम से भी जाना जाता है। ___साहित्यिक गतिविधि-गुजराती साहित्य के आद्यकवि नरसी मेहता सं० १५१२-सं०१५३७ का आविर्भाव इस शताब्दी के पूर्वार्द्ध की एक महत्वपूर्ण साहित्यिक घटना है। आद्यकवि की पद्वी उन्हें क्यों प्राप्त हुई इस विवाद में जाने का यहाँ अवसर नहीं है किन्तु दो बातें इस सन्दर्भ में अवश्य कहनी हैं । एक तो यह कि इनकी रचनाओं की मूलभाषा से वर्तमान में छपी पुस्तकों की भाषा का मिलान करने पर उनमें बड़ा अन्तर दिखाई पड़ता है For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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