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________________ २१ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३२१ इस काल में मालवाधिपति मुहम्मद के मंत्री मांडवगढ़ वासी चांदा साह और संघपति सूरा आदिप्रसिद्ध श्रेष्ठियों ने कई प्रतिष्ठायें करवाई और संघयात्रायें निकलवाई | गुजरात के सुल्तान के मंत्री प्राग्वाट् वंशी कर्मण संघवी ने शत्रुञ्जय की संघयात्रा की। मांडवगढ़ वासी मालवानरेश के प्रियपात्र माफर मलिक की उपाधि से विभूषित मेघमंत्री ने मांडवगढ़ के सभी परिवारों में एक एक स्वर्णमुद्रा के साथ दस दस सेर लड्डू बँटवाया । समराशाह द्वारा स्थापित शत्रुञ्जय की मूर्ति जिसे बेगड़ के समय पुनः खंडित कर दिया गया था, संवत् १५८७ में कर्माशाह ने उसकी पुनर्प्रतिष्ठा करवाई | कर्माशाह प्रसिद्ध महाराणा सांगा के मित्र तोलाशाह के पुत्र थे । इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी के समय से लेकर राणा सांगा (मुगलवंश की स्थापना) और बहादुर शाह के समय तक क्रमशः राजस्थान और गुजरात में जैनों का सम्बन्ध शासकों के साथ प्रायः अच्छा ही रहा । धार्मिक स्थिति - सं० १५१७ में तपागच्छीय आचार्य लक्ष्मी सागर सूरि को गच्छनायक पद प्राप्त हुआ । इनके समय में सोमचारित्र ने सं० १५४१ में 'गुरु गुणरत्नाकर' नामक प्रसिद्ध काव्य की रचना की जिसमें तत्कालीन अनकों महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सूचनायें उपलब्ध हैं । सं० १५२२ में तपागच्छीय आचार्य आनन्दविमल सूरि ने धर्म की शिथिलता दूर करने के लिए क्रियोद्धार किया और १४ वर्ष तक उग्र तप किया । उन्होंने अपनी तपश्चर्या एवं प्रभावशाली भाषणशैली से जैन समाज को संगठित एवं सुव्यवस्थित करने का प्रयास किया । इसी समय धार्मिक सुधार का आन्दोलन लोकाशाह और उनके शिष्य लखमसी ने प्रारम्भ किया । धार्मिक सुधार आन्दोलन - विश्व के इतिहास में १५वीं और १६वीं शताब्दियाँ वैचारिक क्रान्ति और आचारगत पवित्रता की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। यूरोप में पोपवाद के विरुद्ध मार्टिन लूथर ने क्रान्ति का विगुल बजाया। भारत में भी कई धर्म सुधार सम्बन्धी आन्दोलन इसी समय प्रारम्भ हुए। पंजाब में गुरुनानक, मध्यदेश में संत कबीर, दक्षिण में नामदेव आदि ने धार्मिक आडम्बर, बाह्याचार, जड़पूजा आदि के विरुद्ध आवाज बुलन्द किया और जनमानस को शुद्ध, सात्विक तथा आन्तरिक धर्म साधना की ओर प्रेरित किया। इसी कड़ी में महान् क्रान्तिकारी लोकाशाह ने जैनधर्म में प्रचलित रूढ़िवाद और जड़ता के विरुद्ध युद्ध छेड़ा । साध्वाचार की मर्यादा और संयम की कठोरता पर बल देते हुए गुण पूजा की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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