________________
३१८
मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
नायें उपलब्ध होती हैं जैसे नरपति नाल्ह ( जोशी ब्राह्मण) कृत वीसलदेव रासो अत्यन्त सरल बोलचाल की राजस्थानी रचना है । इसी प्रकार श्रीधर व्यास कृत रणमल्ल छंद वीर रस की सुन्दर रचना है। इनकी सप्तशती छंद नामक रचना 'मरुवाणी' में प्रकाशित हुई थी । पद्मनाभ का कान्हडदे प्रबन्ध महत्वपूर्ण ऐतिहासिक काव्य है जो राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान से प्रकाशित है । व्यास मांडा कृत हम्मीरायण (सं०१५३८) शार्दूल रा० इ० बीकानेर से प्रकाशित महत्वपूर्ण रचना है ।
काव्य साहित्य के अतिरिक्त इस युग में सभी जीवनोपयोगी विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखी गई । विनोदपूर्ण रचनाओं में भैंस की सेवा और वंदर रासो तथा हीयाली, गूढ़ा, प्रहेलिका आदि नाना लोकरंजक काव्यरूपों में भी प्रचुर साहित्य रचा गया है ।
लोकसाहित्य - मरुगुर्जर लोक साहित्य के अन्तर्गत ढोलामारु राहा, नरसी जी रो माहेरी, कृष्ण रुक्मिणी रो ब्यावलो आदि उल्लेखनीय हैं । जैन मुनि हमेशा ही लोक जीवन से सम्बन्धित रहे । वे जहां गये वहाँ की लोकभाषा और लोकरुचि का आदर करते हुए धर्म प्रधान लोक-साहित्य का सृजन करते रहे । ये लोकगीत नाना राग-रागिनियों, देसियों और ढालों में गाये जाते हैं | देसाई जी ने जै० गु० क० भाग ३ के परिशिष्ट में २४५० देशियों और ढालों की विस्तृत सूची दी है । ये सभी तर्ज राजस्थान और गुजरात में कभी काफी लोकप्रिय रहे हैं । इनमें से बहुतों को आजकल लोगों ने भुला दिया है किन्तु इन रचनाओं में ऐसे भूले-बिसरे लोकप्रिय तर्ज या धुन आज भी सुरक्षित हैं । इस प्रकार जैन कवियों ने लोकसाहित्य के सृजन और संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान किया है । पहले हमें देखना है कि इस साहित्य सृजन के समय सामाजिक परिस्थितियाँ कैसी थीं।
१६वीं शताब्दी की राजनीतिक पृष्ठभूमि - इस शताब्दी के प्रथम - दशक की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना सैयद वंश का अन्त और लोदीवंश की स्थापना थी । सैयद वंश का अन्तिम सुल्तान अलाउद्दीन आलमशाह बड़ा आयोग्य और विलासी था । उसने सारा राजकाज अपने मंत्री हमीद खां पर छोड़ दिया था और स्वयम् दिल्ली छोड़कर बदायूँ में रहता था । हमीद खां ने मौका पाकर बहलोल लोदी को आमन्त्रित किया जो सेना के साथ दिल्ली पहुँचकर निर्विरोध, बिना किसी रक्तपात के दिल्ली की गद्दी पर (सं० १५०८) आसीन हो गया । दिल्ली पर लोदीवंश का शासन सं०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org