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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३११ 'दुर्घट घटना घटित कुटिल कपटागम सूत्कट । वावाहोत्कट करटि करट पाटन सिंहोद्भट ।। विस्टप वांछित कामघट विघडित दुष्ट घट प्रकट जिनभद्र सूरि गुरुवर विकट सितपट सिरो मुकुट ।' 'भावप्रभसूरि गीत'—यह भी 'ऐ० जैन काव्य संग्रह' में प्रकाशित रचना है। इसमें भावप्रभसूरि का वर्णन है जो १५वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हो गये हैं अतः रचना १५वीं शती की है। यह १५ पद्यों की छोटी रचना है। भाषा सरल एवं साहित्य रस से परिपूर्ण है; इसकी प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं: 'समरवि सुहगुरु पाय अहे, जसु दरसणि मनु उल्हसइ ए। थणीयइ मुणिवर राय अहे, कलियुगे जसु महिमा वसइ ए।१। आप साध्वाचार का प्रशंसनीय ढंग से पालन करते थे। कवि लिखता है : 'अमिय समाणीय वाणीय हे, नवरस देसण जो करइ । समय विवेक सुजाण अहे, समकित रयण सो मनि धरइओ। इसकी अन्तिम पंक्तियां देखिये :'सिरि आइरिय मुख कांति दिणियर, भविक कमल विकासणो। जयवंतु श्रीय गुरु भावप्रभ सूरि, जाम ससि गयगणो ।१५।। अज्ञात कवि कृत श्री जिनप्रभ सूरि परम्परा गुर्वावली भी ऐ० जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित १४ छंदों की रचना है जिसमें जिनप्रभसूरि की गुरु परम्परा और महिमा बखानी गई है। इसी के पश्चात् दूसरी रचना 'जिनप्रभसूरि छप्पय' है जिसमें उनके अद्भत करिश्मों जैसे आकाश से कुलह (टोपी) नीचे उतारना, वटवृक्ष को चलाना, शत्रुजय वृक्ष से दुग्ध वर्षा कराना, जिन प्रतिमा से वचन बोलवाना आदि का वर्णन है। यह गुर्वावली अपभ्रंश और उर्दू संस्कृत मिश्रित विचित्र भाषा शैली में होने के कारण भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है । अतः विवरण के विस्तार की अपेक्षा नहीं है। अज्ञात कवि कृत 'श्री कीतिरत्नसूरि फागु' भी इसी संग्रह में प्रकाशित है । कीर्तिरत्नसूरि संखवाल गोत्रीय शाहकोचर के वंशज देपा और उनकी १. ऐ० जे० काव्य संग्रह पृ.० २८ २. ऐ• जै० काव्य संग्रह पृ० ४३-४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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