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________________ मरु-गुर्जर जैन सहित्य ३०५ पीपल गच्छीय सुरिराउ वीरप्पह गणहर तसु पयपंकज राजहंस हीराणंद मुणिवर चउद छियासी वरर्ष । स्थूलभद्र बारहमासा–२८ कड़ी की रचना है। इसकी प्रथम कड़ी देखिये : 'सरसत सामिणि समरिओ, पामिय सद्गुरु पसाउ कि, गाइसु शीयल सुहामणुं स्थूलभद्र मुनिराउ कि ।१। अन्तिम कड़ी देखिये : 'स्थूलिभद्र करे मासग, अ जे मणे धरि आणंदणि, तिहां धरि अचल वधामणु अ, बोले सूरि हीराणंद कि ।२८। आपने रास, पवाड़ा, विवाहलउ, बारहमासा आदि नाना काव्यरूपों में कई उत्तम रचनायें मरुगुर्जर भाषा में लिखकर उसका साहित्य भांडार भरा है और साहित्य रचना के साथ धर्म की प्रभावना में योगदान किया है । भाषा प्रयोग और काव्यत्व की दष्टि से भी आपका मरुगूर्जर के कवियों में उत्तम स्थान है। ___ज्ञानकलश मुनि-आपने सं० १४१५ में 'श्री जिनोदय सूरि पट्टाभिषेक रास' लिखा। इन्हें सूरिपद सं० १४१५ में तरुणप्रभ सूरि के आचार्यत्व में खंभात नगर में प्रदान किया गया था। उसी पट्टाभिषेक का वर्णन इस रास में है। अतः यह काव्य भी सं० १४१५ में लिखा गया होगा। यह रचना ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में प्रकाशित है। रासकार ने सर्वप्रथम मंगलाचरण किया है, तत्पश्चात् अपनी गुरुपरम्परा का वर्णन करता हुआ वह लिखता है कि चंद्रगच्छ की वजशाखा में अभयदेव सूरि (४२वें आचार्य) के बाद सर्वश्री जिनवल्लभ, जिनदत्त, जिनपति और जिनेश्वर सूरि आदि ५२ आचार्यों के पश्चात् ५३वें आचार्य जिनचन्द्र के पट्टधर जिनोदय सूरि ५४वें आचार्य हुए। इसके बाद इनका वंश परिचय दिया गया है। तदनुसार आपका जन्म सं० १३७५ में माल्हगोत्रीय रुद्रपाल की पत्नी धारल देवी की कुक्षि से पाल्हणपुर में हुआ था। बचपन में आपका नाम समरा था। आपका दीक्षोपरान्त सोमप्रभ और आचार्य पद प्राप्ति के बाद जिनोदय सूरि नाम पड़ा। रासकर्ता ज्ञानकलश उनके शिष्य थे। ऐ० गुर्जर काव्य संचय के सम्पादक मुनि जिनविजय जी का कथन है कि यह रचना प्रारम्भिक मरुगुर्जर का अभ्यास करने वालों के लिए आनन्द दायक है। १. श्री मो० द० देसाई, जै० गु० क० भाग १ १० २६-२७ और भाग ३ पृ० ४२७-२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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