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________________ ३०४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विद्याविलास पवाडो-पवाडा एक विशेष प्रकार का काव्य रूप है। इसका प्रचार तथा प्रयोग राजस्थान और गुजरात के चारण कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की विरुदावली का विस्तृत वर्णन करने के लिए किया था। इस काव्य विधा का प्रयोग जैन कवियों ने मुनियों और महापुरुषों का गुणगान करने के लिए किया है। प्रस्तुत पवाड़े का प्रथम पद्य उद्ध त किया जा रहा है : 'पहिलुपणमीय पटम जिणेसर, सित्तुजय अवतार, हथिणउरि श्री शांति जिणेसर अज्जति निमिकुमार । जीराउलि पूरि पास जिणेसर, सांचउरे वद्धमान । कासमीर पुरि सरसति सामिणि, दिउमुझनई वरदान ।१।' अन्त 'पीपल गच्छि गुरुइ गुणनिलउओ, वीरदेव सूरिहि पाटिओ अचल बधामणुओ। वीरप्रभ सूरि गुरु गहगही, पाटि हीराणंद सूरि, संवत १४ पच्चासीहो विरचीउ चरिअ रसाल ।' दशार्णभद्र रास का आदि, अन्त देखिये :आदि- 'वीर जिणेसर पयनमीओ, समरीय समरीय सरसति देवि कि, दसनभद्द गुण गाइस्यु अ, हीउलयइ हरष धरेवि कि, वीर जिणेसर पय नमी ।१६ अन्त 'इणिपरि जिणवर गुण थुण नासइ कश्मल दूरि कि, बोलइ बोलइ हीराणंदसूरि कि, इणि परि जिणवर जिणवर वादंताओ। जंबू स्वामीनु वीवाहलउ सं० १४९५ वै०शु०८ सांचौर का आदि पद्य : वीर जिणेसर पणमीय पाय, गणहर गोयम मनि धरी अ, समरी सरसति कवियण पाय, वीणा पुस्तक धारिणि ।१। अन्त 'पुर साचुर मझारि वीर भुवण रलियामणु , संघ सहित घरबारि, संवत चऊद पंचाशावइ । मन तणइ आणंद वइसाह सुदि आठिमि अ, रचीऊ हीराणंदि जंबूअ सामि विवाहलु ।५३। कलिकाल रास की रचना सं० १४८६ में हुई, इसका रचना काल इस प्रकार है :१. श्री मो०८० देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ. २६-२७, भाग ३ पृ. ४२७-४२९ २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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