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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
शकडाल मंत्री के पुत्र स्थूलिभद्र और पाटलिपुत्र की परम सुन्दरी नगरवधू कोशा की प्रसिद्ध प्रेमकथा का सूत्र लेकर यह फागु लिखा गया है । फागु के अन्त में जैन सिद्धान्त के अनुसार प्रेम-शृङ्गार का पर्यवसान शान्त में दिखाया गया है । भोगी स्थूलिभद्र का चरित्र परम संयमी योगी और आत्मज्ञानी के रूप में परिणत हो गया है। रचनाकाल का उल्लेख कवि ने इन पंक्तियों में किया है :
'चउदह सइ विक्रम समइ नउकइ संवच्छरि, वैशाख सुदि तेरसि अहु फागु नवलि करि । मेदपाट आघाट नयरि श्री पास प्रसादो,
कीयउं कवित हलराज भणइ, अम्हि मणि आणंदो।' फागु सरस कथा का आधार लेकर चला है और कवि में केवल उपदेशक वत्ति नहीं है अतः इसमें रमणीय स्थल पर्याप्त मिलते हैं। काव्य की दृष्टि से भी रचना अवलोकनीय है ।
हीरानन्दसूरि-आप पीपल गच्छीय श्री वीरप्रभसूरि के शिष्य थे। आप राजस्थान के उत्तम कवियों में गिने जाते हैं । आपने वस्तुपाल तेजपाल रास सं० १४८४, विद्याविलास पवाड़ो सं० १४८५, दशार्णभद्ररास, जंबू स्वामी विवाहलो सं० १४९५ सांचौर, कलिकाल रास सं० १४८६
और स्थलिभद्र बारहमासा (२८ कड़ी) नामक रचनायें मरुगुर्जर भाषा में लिखी हैं । वस्तुपाल तेजपाल गुजरात के महायशस्वी मंत्री बंधु थे। इनका विवरण पहले दिया जा चुका है अतः विषय वस्तु का विस्तार न करके केवल भाषा शैली के नमूने के लिए कुछ पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं :'वीरदीवह वीरदीवह सूरि गुरु पट्टि, सिरी वीरप्पह सूरि वीरबाह
सासणि प्रसिद्ध । पिप्पल गच्छहि गुणनिलु, जगह माहि जस जेणि लद्धउ । संवत चउद चुरासीइं, अति आणंद सूरि, तास पाटइ विस्तग चरीइ, रच्यु श्री हीराणंदसूरी।।
इसमें रचनाकार का नाम, गुरु परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख है। यह एक ऐतिहासिक रास है और तत्कालीन अनेक महत्वपूर्ण सूचनायें इस रास द्वारा प्राप्त होती हैं। १. श्री मो० द० देसाई जै० गु० कवि भाग ३ पृ० ४२७
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