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________________ ३०१ मरु-गुर्जर जैन साहित्य 'जूआ मांस दारु तणी, करे वेश्याशु जोष, जीव हिंसा चोरी करे, परनारी नो दोष व्यसन सातमु परनारी नु प्रत्यक्ष पाप दीखायु रावण पदमोत्तर मणिरथ राजा तीनुराज गमायु ।' इसमें गुजराती के साथ मारवाड़ी, राजस्थानी के शब्द अधिक प्रयुक्त हुए हैं। इसे शा भीमसी माणेक ने प्रकाशित किया है । हरिकलश--आप धर्मघोष गच्छ के पद्मानन्द सूरि के शिष्य थे । आपने 'कुरुदेश तीर्थमाला स्त्रोत्रम्', पूर्व-दक्षिण देश तीर्थमाला एवं अनेक तीर्थमाला स्तोत्रम् जिनमें श्री गुजरात सोरठ देश तीर्थमाला, वागड़देश तीर्थमाला, दिल्ली मेवाती देश चैत्य परिपाटी, आदीश्वर वीनती और जीरावल्ला वीनती प्रमुख तीर्थमालास्तोत्र, स्तव, वीनती आदि हैं, की रचना की। इन रचनाओं की भाषा के नमूने आगे प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिनसे यह पता चलता है कि कवि की भाषा पर हिन्दी का बड़ा स्पष्ट प्रभाव था। सच तो यह है कि १५वीं शताब्दी तक हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी काफी मिलतीजुलती भाषायें थी और लेखक इनके शब्दों का बिना किसी भेदभाव के अपनी रचना में प्रयोग करते थे। उदाहरणार्थ हरिकलश कृत 'श्री गुजरात' सोरठ देश तीर्थमाला स्तोत्रम् ( १९ गा० ) का प्रारम्भिक पद्य देखिये : 'चउबीस जिणवर पणमवि सुन्दर, हियइ हरषु आणेवि घण । सिवलच्छी दायग तिहुयण नायक, तीरथमाला थुणउ जिण। इसका अन्तिम पद्य देखिये : 'इतिय तित्थमाला अति रसाला, पुण्यशाला मणहरा, भाविहिं गममिय पुण्य दंसिय जग प्रसंसिय जिणवरा । सिरि धम्म सूरिहिं गच्छ भूरिहिं भत्ति पूरिहिं सुन्दरो। हरिकलसि मुणिवरि भावु धरि करि, थुणिय सुघरि सुहकरो।१९।' इसी प्रकार वागड़ देश तीर्थमाला स्तोत्रम् (गाथा ११) का भी आदि, अन्त दिया जा रहा है :आदि 'जिण नमिय सुमंगल बागड़ मंडल भाविहि निमल ते थणउं । अरिहंत अराहउं पुण्य विसाहउं, लीजइ लाहउं भव तणउ ।। १. मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ० १७ २. श्री अ० च० नाहटा-म• गुर्जर जैन कवि पृ० ९६-९९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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