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________________ २९० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कीर्तिकौमुदी का विस्तृत प्रकाश 'सोम सौभाग्य' नामक काव्य में बिखरा हुआ है। आपने अनेक जिनालयों का निर्माण कराया, बिंबों की प्रतिष्ठा कराई और संघयात्राओं का आयोजन कराया। आपके शिष्यों की संख्या भी काफी बड़ी थी। आपने हजारों धर्म ग्रन्थों की प्रतियाँ करवाई और जीर्ण प्रतियों का जीर्णोद्धार कराया। इस प्रकार आप १५वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की प्रायः सभी गतिविधियों के प्रेरणास्रोत थे। अतः उस काल को सोमसुन्दर युग कहना अत्युक्ति नहीं है । मुनिसुन्दरसूरि, जयचन्दसूरि, भुवनसुन्दर सूरि, जिनकीर्ति सूरि और रत्नशेखर सूरि तथा इनके शिष्य-प्रशिष्यों ने इस युग की धार्मिक तथा साहित्यिक-उन्नति में बड़ा योगदान किया। इस युग में उदयनन्दि, लक्ष्मीसागर, शुभरत्न, जिनमण्डन, चरित्ररत्न, सत्यशेखर, हेमहंस, पुण्यराज, विवेकसागर, ज्ञानकीर्ति आदि वाचक, उपाध्याय, पंडित जैसी उपाधियों से विभूषित नाना ग्रन्थों के उत्तम लेखक हो गये हैं। इस काल के खरतरगच्छीय आचार्यों में जिनभद्र सूरि और जिनवर्द्धन सरि बड़े प्रभावशाली आचार्य थे। इन लोगों ने भी तत्कालीन धार्मिक और साहित्यिक वातावरण को उन्नत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान किया था। इस प्रकार यह युग समग्र रूप से जैनधर्म भी उन्नति का युग था और खरतरगच्छ तथा तपागच्छ के इन महान् आचार्यों द्वारा धर्म की खूब प्रभावना हो रही थी। सोमसुन्दर की रचनायें :-सोमसुन्दर सूरि ने संस्कृत में भाष्यत्रय चणि, कल्याणक स्तवन, रत्नकोश, नवस्तवी आदि रचनायें की हैं। आपने गुर्जर गद्य में उपदेशमाला बाला० १४८५, योगशास्त्र बा0, षडावश्यक बाला०, आराधना पताका बाला०, नवतत्व बाला०, षष्ठी शतक बाला० सं० १४८६ में लिखा । इस प्रकार आप मरुगुर्जर के समर्थ गद्यकार भी थे। मरुगूर्जर भाषा की महत्वपूर्ण काव्य रचना आपने 'नेमिनाथ नवरस फागु' लिखी है। इसकी भाषा का उदाहरण देखिये : 'समर विशारद सकल विशारद सारद या पर देवी रे, गाइसु नेमि जिणिद निरंजन रंजन जगह नमेवी रे । इसका एक छन्द और प्रस्तुत है : 'धवल आसाढ़नी आठमी नाठं महामेवनारी, नेमि जिणेसर सिवपुरि वपुरि गयु गिरिनारि । 'आराधना रास' की भाषा का निश्चय मूलपाठ के अभाव में नहीं हो पाया, अतः विवरण देना संभव नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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