________________
मरु-गुर्जर जैन साहित्य
२९७
जिम देवदानव मांहि गरुअ गज्जए अमरेसरो।
तिम सयल गच्छह माह गरुअउ राजगच्छ सुरवरतरो।' इसकी अन्तिम पंक्ति इस प्रकार है :--
'इम भणइ भगतिहि सोमकुजर जाम चंद दिणंदउ ।' सोमतिलकसूरि-आप रुद्रपल्लीय गच्छ के संघतिलक के शिष्य थे। इनका दूसरा नाम विद्यातिलक भी था। उन्होंने षट्दर्शन सूत्र टीका, जयकीति कृत शीलोपदेश माला पर शीलतरंगिणी नामक वृत्ति और सं० १४२४ में कुमारपाल निबन्ध लिखा। यह पता नहीं कि यह प्रबन्ध काव्य मरुगुर्जर भाषा में लिखा है या अपभ्रंश में, अतः इसका विशेष विवरण नहीं दिया जा रहा है । एक दूसरे सोमतिलक सूरि ने क्षेत्र समास और नवतत्व पर अवचरि लिखी। 'अंचलमत निराकरण' नामक शुद्ध साम्प्रदायिक रचना भी उन्हीं की है। आप सम्भवतः सोमप्रभसूरि के शिष्य थे। आपके शिष्य जयानन्दसूरि ने स्थूलिभद्र चरित लिखा है।
सोमसुन्दरसूरि-आप तपागच्छीय जयानन्द सूरि के शिष्य थे। आप जैन लेखकों में अग्रगण्य हैं। आपने संस्कृत, प्राकृत और देशी भाषाओं में गद्य और पद्यबद्ध अनेक रचनायें लिखी हैं। श्री मो० द० देसाई ने १५वीं शती के उत्तरार्द्ध (सं० १४५६ से १५०० तक) को सोमसुन्दर युग कहा है। आप इस युग के युगपुरुष माने जाते हैं। आपने सं० १४८१ में प्राकृत, संस्कृत और गुजराती की मिश्र रचना 'नेमिनाथ नवरस फागु' लिखा । आपने मरुगुर्जर में सं० १४५० में आराधना रास और सं० १४८१ में स्थूलिभद्र कवित्त लिखा। ___ आपका जन्म गुजरात के प्रह्लादनपुर (पालनपुर) में सज्जन नामक श्रेष्ठि की पत्नी माल्हण देवी की कुक्षि से सं० १४३० में हआ था। सं० १४३७ में आपने तपागच्छीय आचार्य जयानन्द सूरि से दीक्षा ली थी। बड़े अध्यवसाय पूर्वक आपने विविध शास्त्रों का अध्ययन किया और धरन्धर विद्वान् हो गये । सं० १४५७ में देवसुन्दरसूरि ने पाटण में आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया।
इस अवसर पर नरसिंह सेठ ने बड़ा उत्सव किया और आप तपागच्छ के ५०वें पट्टधर बने । आप अपने समय के बड़े प्रभावशाली आचार्य थे। आपकी
१. ऐ० जे० काव्य संग्रह प० ४३ २. श्री मो० द० देसाई-जै० सा० नो इतिहास पृ० ४६२-४७१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org