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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
गौतम पृच्छा चौपइ की प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं
'प्रणमी वीर मुगतिदातार, जाणउं तु गोयम गणहार,
हइउइ आणी पर उपकार, पूछई धर्माधर्म विचार ।। अन्त 'गौतम सामि पूछि उ जेतलउ, श्री महावीर कहिउं तेतलंऊं
पुण्य पाप कीधा फल होई, उत्तम जीव आण नित हीउ । पूछ उत्तर छइ अठतालीस चिहु आगली चउपइ त्रिणि वीस ।
भण्या गुण्यानउ अहज मर्म, साधुहंस कहइ कीजइ नितुधर्म ।' इसमें गौतम गणधर द्वारा पूछे गये प्रश्न और भ० महावीर द्वारा दिये गये उत्तरों को परल और मनोरंजक शैली में प्रस्तुत किया गया है।
सिद्धसूरि - आपने सं० १४७६ में 'पाटण चैत्य परिपाटी' नामक ६४ गाथा की एक रचना निर्मित की। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
'निय गुरु पाय पणमेवि, सरसति सामिणी मन धरिय । हियडइ हरस धरेवि, गोयम गणहर अणुसरिय । पभणिसु चैत प्रवाडि अणहिलपुर तट्टण तणिय । मुझ मन खरीय रहाड़ि, दिउ मति निरमल अति घणीय ।१। इसकी अन्तिम पंक्तियां आगे उद्धत की जा रही हैं :'पट्टण प्रसिद्ध हरखि किद्धी चैत प्रवाड़ि सुहामणि । भणतां गुणतां श्रवणि सुणतां, अतिह छइ रलियामणी । पभण्या जिकेइ नाम तेइ, अवर जे छइ ते सही, छिहत्तर वरसइ, मन हरिसइ. सिद्ध सुरिंदइ कही ।६४।'
इसमें रचनाकाल और लेखक का नाम आदि विवरण दिया गया है। इसकी भाषा सरल मरुगुर्जर है।
सोमकुजर-आपकी रचना 'खरतरगच्छ पट्टावली' ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में प्रकाशित है। खरतरगच्छ की महता का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है
'वखाणियइ गिरि मांहि गरुअउ जेम मेरु महीधरो,
मणि मांहि गिरुगउ जेम सुरमणि जेम ग्रहगणि दिणयरो। १. श्री अ० च० नाहटा--म० गु० जैन कबि पृ. ८३
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