SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य २९१ 'सरसति सामणि पणमवि, नमवि अंबिक हियइ, फागु छंदि समुधर भणइ, नेमि चरिउ निसुणेवि । १। फागु के प्रारम्भ में वसंत का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है 'अरे कोइलि सादु सोहावणउ मोरि मधुर वासंति, अरे भवरा रणझण रुणुकरइ, किरि किन्नर गायंती।1 इसी वसंत क्रीड़ा के अवसर पर नेमिकुमार की मां बोली कि कृष्ण ने सोलह सहस्र रानियों से विवाह किया, क्या तुम एक से भी नहीं करोगे ? उसी समय उनकी भाभियाँ भी हँसी उड़ाने लगी : 'अरे अरहि ऊरहि आहयइ के कैसे ताणंति, अरे काहउं नेमि नपुसको एक रमणि न करंति ।' आगे उग्रसेन की कन्या राजीमती का रूप-गुण वर्णन किया गया है। फिर वही कथा है, बलि पशुओं को बँधा देखकर नेमि को विरक्ति होती है और वे संयम स्वीकार कर लेते हैं । रचना का अन्त देखिये :-- 'अरे समुधरु भणइ सोहावणउ फागु खेलउ सविचार, अरे निमिकुमरु मतु मेल्हउ मुक्ति रमणिदातार ।२८।' प्रा० फागु संग्रह में प्रकाशित फागु की इन अन्तिम पंक्तियों से जै० गु० क० भाग ३ में उद्ध त पंक्तियों में पाठभेद मिलता है यथा समधर भणइ सोहावणइ, फागु खेलउ सुविचारु, अरे निसदिन न मेल्हउ नेमि मुक्ति दातारो। भाषा सरस, प्रवाहमय एवं गेय है। यह फागु मुख्य रूप से एक गेय रचना है। ___ समयप्रभ--आप खरतर गच्छीय कवि थे। आपने सं० १४७५ के बाद किसी समय ऐतिहासिक रास 'जिनभद्रसूरि पट्टाभिषेक रास' लिखा। इसकी प्रति खंडित होने से सम्पूर्ण पाठ उपलब्ध नहीं है। इसमें जिनभद्र सूरि के पट्टाभिषेक की घटना वर्णित है । पट्टाभिषेक की तिथि ज्ञात है अतः यह रचना भी उसी के आसपास की होगी । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियां भी खंडित हैं। कवि माता खेतल देवी का वर्णन करता हुआ लिखता है : 'विनय विवेक विचार सार गुण गण सम्पन्नी, सोहग लावन्न केलि गेह वर चंपावन्नी । १. प्राचीन फागुसंग्रह पृ० ४१-४२ २. श्री मो० द० देसाई जे० गु० क० भाग ३ पृ. ४८१-८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy