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२९० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इनकी मरुगुर्जर की रचनायें छोटी हैं और संख्या में भी कम हैं किन्तु भाषा अध्ययन की दृष्टि से (विशेषतया हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती) इनका विशेष महत्व है। आपकी छोटी रचना 'मुक्तावलि गीत' में गुजराती प्रयोग अधिक है अतः यह रचना भट्टारक सकलकीति के उत्तर कालीन जीवन की होगी जब वे अधिकतर गुजरात में विहार कर रहे थे। नेमीश्वर गीत और मुक्तावलि गीत संगीत प्रधान रचनायें हैं। इनकी भाषा में लय, गेयता और प्रवाह दर्शनीय है। इस प्रकार भ०सकलकीर्ति न केवल मरुगुर्जर बल्कि समग्र जैन साहित्य के एक महान स्तम्भ सिद्ध होते हैं। ___ सधारु-(दिगम्बर) इनके पिता का नाम साह महराज और माता का नाम सुधनु था। आप एरच्छ नगरवासी थे। आपका प्रबन्ध काव्य 'प्रद्युम्न चरित्र' कृष्ण कथा की जैन परम्परा पर आधारित है। यह काव्य सं० १४११ में मध्यप्रदेश के एलिचपूर नामक स्थान में लिखा गया था। इसकी छन्द संख्या ७०० है। प्रद्यम्न के लौटने की सूचना नारद से प्राप्त होने पर रुक्मिणी की उत्कंठा का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है :
'षण षण रुपिणि चढ़इ आवास, षण षण सो जोवइ चौपास ।
मों सो नारद कह्यउ निरुत्त, आज तोहिं घर आवइ पूत । १।। इस विस्तृत महाकाव्य में इस प्रकार के अनेक मार्मिक प्रसंग वणित हैं जिनका काव्यत्व की दृष्टि से महत्व है । इसकी भाषा काव्योपयोगी मरुगुर्जर है। सधारु जैन साहित्य के जाने-माने लेखक हैं जिन्होंने मरुगर्जर का उत्तम प्रयोग किया है।
समधर-आपने सं०१४३७ से पूर्व 'नेमिनाम फागु' लिखा । इसमें कुल १५ गाथायें हैं। यह 'प्राचीन फागु संग्रह' में प्रकाशित फागु है। इसकी हस्तलिखित प्रति सं० १४३७ की प्राप्त है अतः रचना इससे कुछ पूर्व की ही होगी। काव्यकर्ता समधर के सम्बन्ध में भी अधिक जानकारी नहीं प्राप्त है। एक समधर या समुद्र विख्यात् मंत्री मंडण के भाई थे। मंडण स्वयं उत्तम कवि थे। शायद समधर उनके भाई हों या अन्य कोई श्रावक कवि रहे हों।
यह फागु दूहा छंद में लिखित है। जिसकी प्रत्येक पंक्ति के प्रारम्भ में लटकणियाँ की तरह 'अरे' शब्द आया है इससे यह लगता है कि यह फागु गाने के लिए मुख्यतः लिखा गया था। रचना का आदि देखिये१. डॉ० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० ३६
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