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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चरित्र, वर्द्धमान चरित्र, मल्लिनाथ चरित्र, यशोधर चरित्र, धन्यकुमार चरित्र, सुकुमालचरित्र, सुदर्शनचरित्र, सद्भाषितावलि, सिद्धान्तसार दीपक, कर्मविपाक, तत्वार्थसारदीपक, आगमसार, पुराण संग्रह, श्रीपाल चरित्र, जंबू स्वामी चरित्र, द्वादशानुप्रेक्षा, अष्टाह्निका पूजा, सोलहकारण पूजा, गणधरवलय पूजा आदि उल्लेखनीय हैं। आपकी मरुगुर्जर भाषा में लिखी पांच-छह रचनायें उपलब्ध हैं उनमें 'आराधना प्रतिबोधसार, नेमीश्वर गीत, णमोकार फलगीत, सोलहकारण रास, सार सीखामण रास, शान्तिनाथ फागु महत्वपूर्ण हैं। इन सबका रचना काल १५ वीं शताब्दी है। ईडर की भट्टारकीय गद्दी पर सं० १४७७ में सकल कीर्ति विराजमान हुए। यह तिथि भ० सकलकीर्ति रास के आधार पर दी गई है। डॉ० प्रेमसागर जैन ने अपने ग्रन्थ 'हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि' में इसे सं० १४४४ बताया है किन्तु वह ठीक नहीं मालम होता। आपके कई ग्रन्थों जैसे यशोधर चरित्र, मल्लिनाथ चरित्र और सुदर्शन चरित्र आदि में तत्कालीन इतिहास से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण सूचनायें संकलित हैं । पुस्तक लेखन के अलावा आपने धर्म की प्रभावना के लिए बड़ा महत्वपूर्ण कार्य किया । आपने अनेकों मंदिर-मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई। आपकी जीवनी से पता चलता है कि आप अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में राजस्थान में और उत्तरार्द्ध में अधिकतर गुजरात में विहार करते रहे इसलिए आपकी मरुगुर्जर भाषा की रचनाओं में यह अन्तर कालक्रम के अनुसार स्पष्ट दिखाई पड़ता है। प्रारम्भिक रचनाओं की भाषा पर राजस्थानी और उत्तरकालीन रचनाओं पर गुर्जर का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है । डॉ० कासलीवाल ने इनकी भाषा को हिन्दी कहा है। वस्तुतः ये पुरानी हिन्दी या मरुगुर्जर की रचनायें हैं। आपके अनुज और शिष्य ब्रह्म जिनदास ने भी मरुगुर्जर में उच्चकोटि का प्रचुर साहित्य लिखा। आपके दूसरे शिष्य भुवनकीति भी बड़े विद्वान् और यशस्वी लेखक थे। भ० सकलकीर्ति ने अपनी रचनाओं और क्रियाओं से मरुगुर्जर प्रदेश में नवीन चेतना का स्फुरण किया था। आप की कीर्ति का बखान कई कवियों जैसे सकलभूषण, शुभचन्द्र आदि ने मुक्तकण्ठ से अपनी रचनाओं में किया है। आपका स्वर्गवास महसाणा (गुजरात) में सं० १४९९ में हुआ। आप पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्तिम महाकवि और आचार्य हैं।
सकलकोति की (पु० हिन्दी) मरुगुर्जर की रचनाओं का परिचय'णमोकार फलगीत' आपकी प्रथम भाषा रचना कही जाती है। १५ पद्यों
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