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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
शिवदास - आप चारण कवि-साहित्यकार थे । राजस्थानी साहित्य में 'वचनिका' एक विशेष प्रकार का साहित्यरूप है । आपकी रचना 'अचलदास खीची री वचनिका' सं० १४७२ के आसपास लिखी एक प्रसिद्ध रचना है । यह गद्य-पद्य मिश्रित रचना १५वीं शताब्दी के राजस्थानी साहित्य की महत्वपूर्ण कृति है । इसका विवरण गद्य खण्ड के अन्तर्गत दिया जायेगा ।
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शालिभद्र सूरि - आप पूर्णिमागच्छ के कवि थे । आपने सं० १४१० में नादउद्री में देवचन्द्र के अनुरोध पर 'पाँच पाण्डव रास' लिखा । यह प्राचीन जैन रास संग्रह, ( बड़ौदा ) में प्रकाशित हो चुका है । इसमें पाँचों पाण्डवों का जीवनवृत्त जैन मतानुकूल कथा में परिवर्तन करके प्रस्तुत किया गया है । इसके प्रारम्भिक दो पद्य प्रस्तुत हैं :
'नेमि जिणंदह पय पणमेवी, सरसति सामिणि मणि समरेवी । fafe माडी अणुसरइ । १ । आगह द्वापर माहि जुबीतो, पंचह पंडवतणउ चरीतो । हरषि हीयानइ हु भणऊं । २ । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं जिनमें रचना का स्थान और समय दिया गया है :
'सेत्रुजि तित्थि चडेवि पांचह पंडव सिद्धि गया अ, पंडव तणउ चरीतु जे पढ़ओ जो गुणओ संभलओ, षाक तणउ विणासु तसु रहइँ अ हेलां होइसि ओ । नीपनउ नयरि नादउद्री बच्छरी ओ चउद दहोतर ओ । तंदुल खयालीय सूत्र माझिला अ भव अम्हि ऊधर्या ओ | पूनम परव मुणिंद सालिभद्र ओ सूरिहि नीमीउ ओ । देवचन्द्र उपरोधि पंडव अ रासु रसाउलि ओ ।"
सालि सूरि- आपकी रचना भी महाभारत की कथा पर आधारित है जिसका नाम 'विराट पर्व' है । शालिभद्र सूरि अपना नाम सालिभद्र सूरि भी लिखते हैं, सम्भव है कि उसमें से 'भद्र' हट गया हो और सालि सूरि रह गया हो तथा 'पाँच पाण्डव रास' के कर्त्ता शालिभद्र सूरि और विराट् पर्व के कर्त्ता सालिसूरि एक ही व्यक्ति हों । इसकी कथा और नाम की समानता को देखते हुए की मो० द० देसाई ने भी दोनों के एक ही व्यक्ति होने की
१. श्री अ० च० नाहटा, 'परम्परा' पृ० १७९ और देसाई, जे० गु० क० भाग ३
पृ० ४१३
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