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________________ २८२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्तवन, शान्ति जिनस्तवन, तमालताली पार्श्व स्तवन, तीर्थयात्रा स्तवन आदि आपकी संस्कृत भाषा की रचनायें हैं। चतुर्विंशति जिनस्तवन, सीमंधर स्तवन और तीर्थमाला स्तवन आदि आपकी अपभ्रंश की रचनायें हैं। वीतराग विज्ञप्ति (१३ पद्य) और गौतम रास (४७ पद्य सं० १४१२) आपकी मरुगुर्जर की रचनायें हैं। इनमें से गौतम रास सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय रचना है। हजारों श्रावक इसका नित्यपाठ करते हैं और यह पचीसों पुस्तकों में छप चका है। यह रचना उन्होंने सं० १४१२ कातिक शुक्ल १ खंभात में अपने भाई के दारिद्रय निवारणार्थ लिखी थी; इसलिए धनकामी इसका पारायण बड़ी आतुरता से करते हैं। कुछ लोग इसे उदयवंत कृत लिखकर या विजयभद्र कृत बताकर भ्रम उत्पन्न करते हैं किन्तु रास की ४३वीं गाथा में स्पष्ट 'विणयपहु उवज्झाय थुणिज्जइ' लिखा है अर्थात् विनयप्रभ उपाध्याय ने लिखा है। गौतमरास का वैज्ञानिक अध्ययन महोपाध्याय श्री विनयसागर जी ने 'गौतमरास परिशीलन' में किया है। इस रचना के १८ वर्ष बाद सं० १४३० की लिखित प्राचीन स्वाध्याय पुस्तिका में यह रास तथा विनयप्रभ कृत अन्य कई स्तोत्रादि प्राप्त हुए हैं । प्रति बीकानेर के ज्ञान भंडार में सुरक्षित है। __ श्री विनयप्रभ का जन्म सं० १३६७ से ७२ के बीच किसी समय होना चाहिये । आपकी दीक्षा सं० १३८२ में हुई और यदि उस समय वे १०१५ वर्ष के रहे हों तो यही जन्म समय निकलता है। आपके साथ ही जिनोदयसूरि (सोमप्रभ) भी दीक्षित हुए थे। जिनलब्धसूरि इनके सहपाठी थे। इन्हें १३९४ से १४०६ के बीच कभी उपाध्याय पद प्राप्त हुआ होगा। संभवतः इनका गहस्थ नाम उदयवंत रहा हो । अतः कुछ प्रतियों में रचनाकार के रूप में उदयवंत का नाम भी मिलता है। सं० १४३२ में जिनोदय सूरि का स्वर्गवास हुआ और सं० १४३३ में उनके पट्ट पर जिनराजसूरि प्रतिष्ठित हुए। इसी बीच कभी विनयप्रभ का भी देहावसान हुआ होगा क्योंकि इसके बाद इनकी कोई विशेष रचना न तो मिलती है और कोई सूचना मिलती है। ____ गौतमरास की संक्षिप्त कथा–मगध देश के गुव्वर ग्राम में वसुभूति के पुत्र इन्द्रभूति बड़े रूपवान, गुणवान और प्रतिभावान थे। एक बार भगवान महावीर के पावा पधारने पर आपने अपने संशय उनके समक्ष रखे जिन्हें महावीर ने तुरन्त दूर कर दिया और उससे प्रभावित होकर १. महोपाध्याय विनयसागर-गौतमराज परिशीलन पृ० ८१.८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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