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________________ २७८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मनुष्य, तिर्यंच, नरक और देव तथा नानायोनियों में भटकते प्राणियों को प्राप्त होने वाले असह्य दुःखां का वर्णन किया गया है। १४वीं शती की रचना 'वीस विहरमान रास' के लेखक वस्तिग को ही चिहुंगति चौ० का भी लेखक मानकर इस कृति का परिचय १४वीं शताब्दी में वस्तिग के साथ दिया जा चुका है और जब तक निश्चित प्रमाणों से यह सिद्ध न हो जाय कि इन दोनों के लेखक दो वस्तिग हैं जब तक मेरा निवेदन है कि उक्त दोनों को एक ही व्यक्ति समझा जाय । इन्हें १४वीं शताब्दी का लेखक मानना ही उचित लगता है। चिहुंगति की अन्तिम दो पंक्तियाँ यहाँ पुनः उद्ध त की जा रही हैं : 'रामतिनी छइ मू घणी टेव, गुरुया संघनी नितु करु सेव, अज्ञान पणइ आसातन थाइ, वस्तिग लागइ श्रीसंघ पाय।'' रात्रिभोजन, रहनेमि राजीमती आपकी प्रकाशित रचनायें हैं। हो सकता है कि ये दोनों दो कवि हों; इस पर विचार करना आवश्यक है। विजयभद्र-आप आगम गच्छ के आचार्य हेमविमल सूरि के प्रशिष्य एवं लावण्य रत्न के शिष्य थे। आपकी चार रचनायें मरुगुर्जर में प्राप्त हैं (१) कमलावती रास, (२) कलावती सतीरास, (३)हंसराज वच्छराज (सं० १४१० प्रकाशित) और (४)शील विषेशिखामण । कमलावतीरास का प्रारम्भिक पद्य पहले उद्ध त किया जा रहा है : 'आदि नमु वीर जिणेसर दिणेसर अभिनवो हूणि, भरत क्षेत्रे भरुअचि नगरनी शोभा जाणि, मेघरथ राजा राजकरे धर्म जपे, इन्द्रनी रिद्ध जिसी तिसी तसघर संपि।१।' इसके ७६-७७वें पद्य में गुरु परम्परा का वर्णन किया गया है अतः उन्हें भी आगे उद्धृत किया जा रहा है : 'गच्छनगायक रे हेमविमल सूरि गहगहिया गुणमंदिर रे पंडित श्रेणि सिरोमणि, नित वांदइ रे लावण्यरत्न विद्याधणी विजयभद्र भणे भले भावे। १. श्री मो० द० देसाई भाग 1 पृ० २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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