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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य २७७ तभी अकस्मात् नेमि के वैराग्य का समाचार चारों ओर विजली की तरह फैलकर सर्वत्र विषाद का वातावरण उत्पन्न कर देता है। पाले से हत झुलसी हुई कमलिनी के समान राजुल म्लान, विवर्ण मुख से विलाप करने लगती है, कवि इसका वर्णन इन शब्दों में करता है धरणि धसक्कइ पडउ देवि राजल विहलघंल । रोवइ रिज्जइ वेसु रुबु बहुमन्नइ निप्फलु । २४ । अन्त में कवि कहता है : 'राजल देवि सउ सिद्धि गयउसो देउ थुणीजइ। मलहारिहिं रायसिंहर सूरि किउ फागु रमीजइ । २७ । गोपियों की पवित्र भक्ति के समान राजुल की विरहपूत भक्ति का वर्णन कृष्ण के चचेरे भाई नेमिकुमार को नायक बनाकर जैन साहित्य में काफी प्राचीन काल से होता आया है। भक्ति-आन्दोलन द्वारा इसे आगे चलकर काफी प्रेरणा मिली और नेमि-राजुल के मार्मिक प्रसंग पर काव्यत्व की दृष्टि से उच्चकोटि का प्रभूत साहित्य लिखा गया। राजशेखर कृत श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम् (१० गाथा) का विवरण श्री नाहटा जी ने दिया है।' इसका आदि और अन्त आगे प्रस्तुत है :आदि 'कमठासुर माण गिरिंद पवि भवियंग सरोज विबोह रवि । सुरराय विणंमिय णेगमहं, विनुवामि जिणोसर पास महं । १ । अन्त 'सिरि अससेण नरेसर जाओ, इंदनील निलुप्पल काओ। राय सिहरि संपूइय पाओ, पासु पसीयउ मे जिणराओ। १० । आपकी यह रचना फागु के कोटि की तो नहीं है किन्तु उनका नाम इसमें स्पष्ट रूप से आया है अतः शंका का कोई आधार नहीं है। इन रचनाओं के आधार पर आप संस्कृत प्राकृत के साथ मरुगुर्जर के उच्चकोटि के कवि सिद्ध होते हैं। इन्होंने धार्मिक स्तोत्रम् आदि के साथ रसपूर्ण फागु जैसी काव्यात्मक कृति लिखकर अपनी बहुमुखी प्रतिभा प्रमाणित कर दी है। ___ वस्तिग (वस्तो)--आप सम्भवतः रत्नप्रभसूरि के शिष्य थे। आपकी रचना 'चिहुंगति चौपइ' सं० १४६२ से पूर्व लिखी गई है क्योंकि सं० १४६२ की लिखी इसकी हस्तप्रति प्राप्त है। इसमें जीव की चार गति-- १. श्री अ० च० नाहटा म० गु० जे० कवि पृ० ५९ और जै० गु० क. भाग ३ पु. ४१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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