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________________ २७६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्नात राजुल का समूचा जीवन ही पवित्रता, दृढ़ आस्था और भक्ति का हृदयस्पर्शी आख्यान बन गया है। यह फागु 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' और 'प्राचीन फागु संग्रह' में प्रकाशित है। रास की कथा का सारसंक्षेप इस प्रकार है नेमकुमार द्वारका के यादवराज समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के सुपुत्र थे । उग्रसेन की पुत्री, राजीमती से विवाह के अवसर पर बलि के लिए बँधे पशुओं को देखकर इन्हें विरक्ति हुई, आपने कठोर तप करके तीर्थंकरत्व प्राप्त किया। आप जैनधर्म के बाइसवें तीर्थंकर हैं । राजी - मती इनके विरह की आँच में अपने जीवन को तपःपूत करती रही । राजुल की विरह कथा का वर्णन अनेक जैनकवियों ने किया है अतः नेमिराजुल सम्बन्धी विस्तृत साहित्य मरुगुर्जर में उपलब्ध है जिस पर स्वतन्त्र रूप से कार्य करने की अपेक्षा है । नेमिराजुल सम्बन्धी साहित्य के गहन अरण्य में प्रस्तुत रचना अपने काव्यत्व एवं ऐतिहासिक स्थिति के कारण विशिष्ट स्थान रखती है । इसमें सात विभाग हैं। हर विभाग में एक दोहे के बाद रोला छन्द प्रयुक्त है । इसके आदि का छन्द इस प्रकार है 'सिद्धि जेहिं सइवर चरिय ते तित्थयर नमेवि, फागुबंधि पहु नेमि जिणु गुण गाओसउ केवी । १ । राजुल की नखशिख शोभा का वर्णन करता हुआ कवि कहता है'अह सामल कोमल केशपास, किरि मोर कलाउ । अद्ध चंद समु भालु मयणु पोसइ भउवाउ । अहर पवाल विरेह कंठु राजल जाणु वीणु रणरणाई, जाणु कोइल टहकडलउ | किरि ससिबिंब कपोल कन्न हिंडोल फुरंता, सर रुडउ । नासा वंसा गरुड़ चंचु दाडिम फल दंता । इत्यादि । 2 राजुल का मर्मभेदी विलाप कवि ने बड़े कारुणिक ढंग से व्यक्त किया है । विवाह का उत्सव और धूमधाम अपने चरमबिन्दु पर पहुँचता है, चारों ओर नाच-गान, बाजे-गाजे का शोर हो रहा है 'रुणुझुणु रुणुझुणु ए रुणुझुणु ए कडिघघरियाली | रिमझिम रिमझिम रिमझिम ए पय नेऊर जुयली ।' १. प्राचीन फागुसंग्रह और जै० गु० क० भाग १ पृ० १३ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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