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________________ २७४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास घर लौटने पर माता ने विवाह का आग्रह किया। उत्सव होने लगे। इसी प्रसंग में कवि ने नारी के रूप और शृगार वर्णन का अवसर निकाल लिया है। विवाहोपरान्त रात्रि में जंबू वासर घर में गये किन्तु रात्रि भर जागते रहे । इसी समय एक चोर आया जिसे जंबू स्वामी ने प्रतिबोध दिया और वह अपने ५०० साथियों के साथ इनका शिष्य हो गया। बाद में जंबू स्वामी की आठों पत्नियां भी दीक्षित हुई। कठिन तपस्या और साधना करके जंबू स्वामी केवलज्ञानी हुए । इस फागु में श्रेष्ठ कवित्व और प्रौढ़ भाषा शैली का परिचय मिलता है और लेखक सिद्धहस्त कवि मालम पड़ता है। जंबू की रूप शोभा का वर्णन कवि इन शब्दों में करता है :-- 'जंबु कुमरु तसु नंदनु नंदन तरु समुछायु कायकांति बहुभासरु वासर नउ जिम राउ । निरुवम रुवि पुरन्दर सून्दर सोहग सारु, कदलि दलावलि कोमल निम्मल जस आधारु ।' उसके पश्चात् प्रकृति की वासंती छठा का वर्णन देखिये 'परिमल केतिअ मातीय, जातिय जिम विहसंति, महूयर तिम तिम रुणझुण रुण झुणकार करंति । फल दल भारि मनोहर मोह रचइ सहकार, मंजरि मउर बहकइ टहकइ कोइल सार। तत्पश्चात् आठ कुमारियों के रूप का मोहक वर्णन किया गया है 'मनमथ ठवीय पयोहर मोहर सावलि तुग, लवणिम भरीय अंकुरीय पूरीय रागि नितंब ।' इस रास की अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं जिनमें रचनाकाल का उल्लेख है __ 'चउदह तीस संवच्छरि मुच्छरि मानि विमत्तु, जंबुय गुण अनुरागर्हि फागिहिं कहीय चरित्तु ।६०। इसका संक्षिप्त विवरण श्री अ० च० नाहटा ने मरुगुर्जर जैन कवि पृ० ६८ पर दिया है। राजलक्ष्मी-आप तपागच्छीय शिवचुला महत्तरा की शिष्या थीं। आपने सं० १५०० के आसपास शिवचूला गणिनी विज्ञप्ति (गाथा २०) की १. प्राचीन फागु संग्रह पृ० ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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