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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
२७३.
रत्नशेखर सूरि-- आप श्री तिलक सूरि के शिष्य थे । आपने सं०१४१९ में 'गौतम रास' नामक ७५ गाथा की रचना थिरउद्दपुर में की। इसमें: गौतम गणधर के पावन चरित्र को सात भासों में वर्णित किया गया है ।। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है :--
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'ओंकार तुम भाय वीर सिरिवन्न महन्तो । हियै कमल झावि ध्यावेइ, वीर जिणवर अरिहन्तो पणिसु गोयम स्वामि तणी गुण संथव रासो, जिणु निसुणो भो भविय लोय मणि हरखि उलासो |१|
I
इसके अन्त की कुछ पंक्तियां दी जा रही हैं जिनमें रचना सम्बन्धी सूचनायें दी गई हैं यथा-
चौदह सयह गुणीसइ वरसै थिरउदपुरि गरुवउ मणि हरस रासु एहु गोयम तणौ ।. रयणसिहर सुरीदिहिकियौ चौबिह संघ विविह परै, रिद्धि वृद्धि मंगल सिरि दियौ । ७५ । '
राजतिलक - आपकी रचना 'जंबू स्वामी फाग' (गाथा ६०) सं० १४३० की लिखी प्राचीन फागु संग्रह में प्रकाशित है किन्तु सांडेसरा ने इस फागु के कत्ता का नाम अज्ञात बताया है । श्री अ० च० नाहटा जी ने इसे राजतिलक कृत कहा है किन्तु उन्होंने भी राजतिलक के आगे प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है इससे लगता है कि उन्हें भी कर्त्ता के सम्बन्ध में सन्देह है । श्री देसाई न भी इस कृति को अज्ञात कवि कृत ही कहा है । इस रचना में काल निदेश तो है किन्तु लेखक का नाम न होने से कर्त्ता का निश्चय नहीं हो पाता । अन्तर प्रास वाले ६० दूहों में यह फागु लिखा गया है और भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है ।
के नगर
जैनधर्म में नेमिनाथ और स्थूलिभद्र की भाँति जंबू स्वामी की कथा भी बड़ी लोकप्रसिद्ध है । आप मगधदेश की नगरी राजगृह श्र ेष्ठि ऋषभदत्त और उनकी पत्नी धारिणी देवी के पुत्र थे । एक बार अपनी युवावस्था में वसंत ऋतु आने पर आप राजगृह के समीपस्थ वैमारगिरि पर क्रीड़ार्थ गये । कवि अवसर निकाल कर यहीं वसंत की वनश्री का मोहक वर्णन करता है । यहीं पर जंबू की सुधर्मा स्वामी से मुलाकात हुई और उनके उपदेश से इन्हें वास्तविक बोध और वैराग्योदय हुआ । १. श्री अ० च० नाहटा - म० गु० जै० कवि पृ० ६४
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