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________________ २७२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अन्त सावीय सहस्स छत्तीस लख ठिनि तह नेमि जिण । वास सहस्स सव्वाउं सिव करि सामिय सिवरमण । इसु उज नेमि जिणंद मुणि रयणायर कित्तिधरो, चउविह संघह देउ वर मंगल सो मुत्ति वरो। १० ।' आपकी द्वितीय रचना आदिनाथ जन्माभिषेक के आदि की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं 'विनीय नयरी विनीय नयरी नामि निपगेहि, मरुदेविहि ऊपरिसर राय हंस सारिच्छ सामिय, सिरि रिसहेसर पढम जिण, पहम रायवर वसह गामिय, वसह अलंकिय कणय तण जागो जग आधार तसु पय वन्दिय तसु तणो कहिशु जन्म सुविचार । १। इसके अन्त की दो पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं : 'इणि परि सयल जिनेश्वरहिं करहु न्हवण बहुमत्ति । मुनि रयणायर पावहर जिम तुम दियइ वरमुत्ति ।१२।। इन दोनों रचनाओं के कर्ता रत्नाकर मुनि हैं। श्री अ० च० नाहटा ने 'परम्परा' में देवसुन्दर सूरि के शिष्य पं० रत्नाकर की रचना काकबंधि चौपइ २ (धम्मक्तक) सं० १४५० का उल्लेख किया है। इसकी हस्तलिखित प्रति श्री नाहटा जी के संग्रह में है। श्री नाहटा जी ने इसका विशेष विवरण नहीं दिया है। अतः इसके सम्बन्ध में कुछ निश्चयपूर्वक कहना कठिन है, किन्तु इतना निश्चित है कि यह रचना १५वीं शताब्दी में सं० १४५० की है। रत्नाकर मूनि देपाल के समकालीन हैं अर्थात १५वीं के अन्त और १६वीं के पूर्वार्द्ध में इनका रचनाकाल अनुमानित है। १६वीं शती में मेघनन्दन के शिष्य एक अन्य रत्नाकर पाठक हो गये हैं जिन्होंने शान्तिसूरि के प्राकृत ग्रन्थ 'जीन विचार' पर संस्कृत में वृत्ति लिखी थी। __ काकबंधि के कर्ता पं० रत्नाकर इन सबसे भिन्न कवि हो सकते हैं जिनका विवरण अप्राप्य है। एक रत्नाकर सूरि रत्नाकर गच्छ के स्थापक हो गये हैं जो आ० हेमचन्द्र के समकालीन थे। इस प्रकार १२वीं-१३वीं शताब्दी से लेकर १५-१६ तक कई रत्नाकर नामक विद्वान् लेखक मिलते हैं जिनका निश्चित विवरण और कालक्रम अल्पज्ञात है। १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ० ४२ २. श्री अ० च० नाहटा, परम्परा १८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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