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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य २७१ इन पंक्तियों में त्रिबली को त्रिविध कपट की रेखा और क्षीणकटि को युवकों को क्षीण करने वाली बताया गया है। इस विषनारी के विपरीत जिसके मन में शमरस रूपी सुन्दरी का निवास होता है उसके जीवन में सुप्रभात का प्रकाश आता है । कवि लिखता है :'जेहमनि शमरस सुन्दरि वसइ अराति, ते मझसील सुदिरिसण-दरिसण दिउ सुप्रभाति ।५०।1 इस प्रकार इस कृति में बड़े आलंकारिक ढंग से शम का सुन्दर चित्र नारी के विपर्यास से प्रस्तुत किया गया है । रत्नवल्लभ- आपने स्थूलभद्र फाग (गा० २७) की रचना इसी शती में किया। इसकी हस्तलिखित प्रति सं० १५१३ के आस-पास की प्राप्त होने से यह रचना १५वीं शती में ही लिखी गई होगी। भाषा और काव्यत्व के नमूने के लिए फाग का प्रथम और अन्तिम पद्य आगे उद्धृत किया जा रहा है :आदि 'पणमिय पास जिणिंद पय, अनु सरसइ समरेवी, थूलभद्द मुणिवरु भणसु फागवंधि गुण केवी। १। अन्त 'नन्दउ सो सिरि थूलभद्द, जो जगह पहाणो, भलिऊ जिणि जग-मल्ल, सल्ल रयवल्लह माणो। चेत्र मासि बहु हरसि रंगि इह गुणि गावऊ, खेला नियमणि ऊलटहिं तसु फागु रमेवऊ । २७ ।' रत्नाकर मुनि-आपकी 'श्री नेमिनाथ वीनति' और 'आदिनाथ जन्माभिषेक' नामक रचनायें प्राप्त हैं। इनमें से 'जन्माभिषेक' २ प्रकाशित रचना है। इसे देपाल की स्नात्रपूजा के साथ प्रकाशित किया गया है। यह कवि देपाल का समकालीन था। इनके नेमिनाथ वीनति (गाथा १०) का प्रारम्भ इस छन्द से हुआ है : 'गिरिनार गिरिअवर मौलि, बारवइपुरि मंडणउ ओ, धन्ना ते नर-नारि, नमइ नेमि जे निम्मलउ ओ। कज्जल कांति सरीर, सोहग - सुन्दर नेमि जिण, करुणा सायर धीर, केवल लच्छीय केलियण । २।' १. श्री अ० च० नाहटा-परम्परा प० १८३ और प्राचीन फागु संग्रह पृ० ७५ २. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ प० ४२१ ३. श्री अ० च० नाहटा, म० गु० जे० कवि पृ० १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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