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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जित मुज की दयनीय दशा का वर्णन है। इसकी भाषा को अपभ्रंश, मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी भी कहा जाता है। ____ गुर्जर-यह खेती और पशुपालन करने वाली जाती थी। हनच्यांग ने (७वीं शती) गुर्जर देश के वर्णन में भीनमाल या श्रीमाल को उसकी राज'धानी बताया है। सातवीं से नवीं शताब्दी के बीच जोधपूर राज्य से सटा “प्रदेश गुर्जर, गुर्जरत्रा या गुजरात कहा जाने लगा था। ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रदेश का यह नाम गुर्जर जाति के आधार पर ही पड़ा होगा । इस प्रकार के अन्य नामकरणों के उदाहरण मौज द हैं, जैसे मालव जाति के नाम पर मालवा, राजपूतों के नाम पर राजपूताना या शेखावत के आधार पर शेखावती आदि नामकरण उल्लेखनीय हैं। कनिंघम ने गुर्जरों को यूची या कुशाणवंशी बताया है। विन्सेन्ट स्मिथ इनकी गणना हूणों में करते हैं। जो हो, इन्हीं गुजरों के नाम पर यह प्रदेश गुजरात कहलाया। इसका मध्यकालीन इतिहास देखने से मालूम होता है कि पहले चावड़ावंश, तत्पश्चात् चालुक्य या सोलंकी वंश, फिर बघेला वंश के बाद यहां मुसलमानों का शासन स्थापित हुआ।
गुर्जर भाषा--यह सप्रमाण सिद्ध हो चुका है कि हेमचन्द्राचार्य के समय तक इस प्रदेश में अपभ्रंश (नागर) भाषा बोली जाती थी। इसके बाद १३वीं से १६वीं शताब्दी के बीच यहां भी मरु-गुर्जर भाषा में जैन साहित्य लिखा जाने लगा । गुजराती भाषा के प्रसिद्ध विद्वान् ब्रजलालजी झावेरी का कथन है कि गुजराती का सम्बन्ध विशेषतः पुरानी हिन्दी से है। गुजरात के इतिहास-लेखक फार्बस ने लिखा है कि गुजरात के लोग उत्तर भारत से इधर आये। अतः जुनी गुजराती पुरानी हिन्दी का ही नामान्तर सिद्ध होती है। श्री प्राणशंकर जी उपाध्याय नामक एक गुजराती विद्वान् को उद्ध त करते हुए श्री भास्कर रामचन्द्र भालेराव ने अपने लेख 'गुजरात का हिन्दी साहित्य' में लिखा है "एमा कशो शक नथी के गुजराती भाषा पर ब्रजभाषानो प्रभाव पड्यो न होत, तो आजे गुजराती भाषानु काई बीज ज स्वरूप बधायो होत। ___ वि० १३वीं शताब्दी से मरु-गुर्जर भाषा गुजरात में अपना आधुनिक रूप ग्रहण करने लगी जिसके कारणों पर आगे प्रकाश डाला जायेगा। संस्कृत के तत्सम शब्द भाषा में बढ़ने लगे। जैन लेखक यथाशक्ति ऐसे १. माधुरी, वर्ष ५ खण्ड २
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