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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
२६९. 'नवसारी स्तवन' भी एक स्तवन है किन्तु ऐतिहासिक घटनाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भाषा तीनों स्तवन की सरल मरुगुर्जर है। तीनों स्तवन हैं अतः इनमें काव्य पक्ष सामान्य कोटि का है।
मंडलिक-आपकी रचना 'पेथडरास' का समय अनिश्चित है कुछ विद्वान् इसे १५वीं शती के प्रथमचरण की और कुछ १४वीं शती के अन्तिम चरण की रचना मानते हैं, अतः मैंने इस कवि और इसके काव्य का विवरण १४वीं शताब्दी में ही दे दिया है। ___ यशःकीति- एक १३वीं शताब्दी के यशःकीति का वर्णन, जो जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला के कर्ता कहे गये हैं, यथास्थान हो चुका है। प्रस्तुत यशःकीर्ति १५वीं शताब्दी के प्रसिद्ध गद्य लेखक तरुणप्रभ सूरि के विद्यागुरु थे। इन्होंने 'चन्दप्पह चरित' नामक खण्डकाव्य लिखा है जिसकी भाषा अपभ्रंश के अधिक करीब है। आपने दो अन्य प्रबन्ध काव्य भी लिखे हैं-पाण्डव पुराण और हरिवंश पुराण जिनकी भाषा अपभ्रश प्रभावित मरु गर्जर है। श्री देसाई ने चन्दप्पह चरित को सं० १५२१ के आसपास की रचना कहा है किन्तु अन्य सभी लेखक इन्हें १५वीं शताब्दी का लेखक मानते हैं । चूंकि इन कवियों को पूर्णतया मरुगुर्जर का कवि नहीं स्वीकार किया गया है और इनकी भाषा अपभ्रंश के अधिक निकट है अतः ये मरुगुर्जर की नवीन धारा की अपेक्षा अपभ्रश की प्राचीन धारा के अधिक कवि हैं इसीलिए इनका विवरण अन्य अपभ्रश कवियों के साथ प्रथम विषयप्रवेशान्तर्गत अपभ्रंश प्रकरण में ही दे दिया गया है।
रत्नमण्डनगणि-आप तपागच्छीय श्री नन्दिरत्न के शिष्य थे। आप ने 'नेमिनाथ नवरस फाग' ( रंगसागर फाग) और 'नारी निरास फाग' नामक रचनायें मरुगुर्जर में की हैं । प्रथम रचना नेमिनाथ नवरस फाग तीन खण्डों में समाप्त हई है। यह प्रकाशित रचना है, इसमें नेमिनाथ का लोक विश्रत चरित वणित है। प्रथम खण्ड के प्रारम्भ और अन्त में संस्कृत के श्लोक हैं, इसी प्रकार द्वितीय खण्ड का भी प्रारम्भ और अन्त संस्कृत के श्लोकों से हुआ है इससे कवि का संस्कृत के प्रति प्रेम प्रकट होता है । तृतीय खण्ड के प्रथम श्लोक में नेमिकुमार का विवाह राजीमती से निश्चित किया जाता है. उस समय राजुल की शोभा का वर्णन करता हुआ कवि कहता है
'गोरी पीन पयोहरा शशिमुखी वंधू करत्ताधरा, हीराली रमणी यदंत कविता वर्णोल्लिसल्लोचना ।
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