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अन्त
मरु-गुर्जर जैन साहित्य
२६७ 'बहुफलि नमइ वीजुउरिय मउरिय अंब रसाल,
सहज सुभागहि रूयडला सूयडला खेलय डाल ।' अन्त में इसके प्रारम्भ और अन्त का छन्द उद्धत करके यह विवरण समेट रहा हूँ : - आदि 'समरवि त्रिभुवन सामणि कामणि सिर सणगारु,
कवियण वयण ज वरसइ सरस अमिउ अणारु । विधन विणासण सासण सामिउ पासकुमार, गायवि सिरि जीराऊलि राऊलिउ फल सारु ।' 'च उद वत्रीसइ संवति संमति ले गुरु पासि, जीराउलि पति गाईउ छाईउ जग जस वासि । पासह फागु सनंदउ चंदउ जा अभिराम,
सोहइ मेरु सुनंदउ मुनि जन वामु ।६० ।' इसमें रचना का समय सं० १४३२ दिया गया है । अतः दोनों रचनायें एक ही समय की लगती हैं । इनकी अन्य रचनाओं के भी कुछ उद्धरण प्रस्तुत किए जा रहे हैं । सीमन्धर स्तवन का आदि और अन्त देखियेआदि 'अतिरस हरिस रसेण विहसिय, लोयण मण वयण,
थुणिसु भावि निय सांमि सिरि सीमंधरु जिणु रयणु ।१। अन्त 'इयतत्ति सत्तिभरेण निम्मिउ सत्थ संघ वगोयरी,
अक्खीण धीरिम मेरुनंदण मुत्ति सिरि सीमंधरो।' अजित शान्ति स्तवन -यह प्रकाशित रचना है (रामविलास या रत्न समुच्चय नामक संग्रह में) आदि 'मंगल कमलाकंद अ सुभ सागर पूनमचन्द अ,
जय गुरु अजित जिणंद अ, शान्तिसर नयणानंद । अन्त 'इमि भगतिहि भोलिम तणी अ, सिरि अजिय संति जिणत्थुय भणीये,
सरणि बिहु जिण पाय अ, श्री मेरनंदणु उवझाय ।' गौतम स्वामि छंद-गाथा ११ सं० १४१५ और दूसरा गौतम स्वामि छंद गाथा १० का उदाहरणप्रथम गौ० छन्द का आदि 'अट्ठ छन्द दस दूहड़ा छप्पहु अडिल्ला दुन्नि ।
जे निसुणइ गोयम तणा ते परिवरियइ पुन्नि । १. श्री मो० द० देसाई, जै० गु० क० भाग पृ० १९
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