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________________ 3 मरु-गुर्जर जैन साहित्य २६३ 'पसूवाड़ दीठउ प्रभो जीण बेलां, तजी राज राजीमती तीणं हेलां, हुसी जीव संघारु रे जीण जाति, पछइ पाछिला काज रे तीणं भांति |१| ' इसका अन्त देखिये : 'मन वचन कायाकरी सीलपाली, रमइ रायमइ मुगति सिउं हाथि ताली । कहइ सुगुरु माणिक्यसूरि महुरवाणी, जयउसंघ समुदाय राजलि राणी ।१८।' इसकी भाषा लोकभाषा के सदृश है जबकि माणिक्य चन्द्रसूरि की भाषा अधिक तत्सम प्रधान, परिष्कृत और साहित्यिक भाषा है अतः ये दोनों सम्भवतः एक कवि नहीं हैं । इसीलिए इनका विवरण अलग अलग दिया गया है । मालदेव - आप बहुरा गोत्रीय श्रावक कवि थे तथा तपागच्छीय देवसुन्दरसूरि के भक्त थे । आपकी रचना नन्दीश्वरस्थ प्रतिमा स्तवन या नन्दीश्वर चौ० ( गाथा ५४ / का आदि इस प्रकार हुआ है : 'पण मवि सिद्ध सवे करजोडि सिरसा केवलि धुरि दोइ कोडि । साधु प्रसादिइं सदफल लेसु, तीरथ नंदीसर वंदेसु 191 इसका अन्तिम पद्य देखिये 'सिरि देवसुन्दर सूरि पयमत्त, बउहुरा मालदे निरमल चित्त, नंदीसर वर कहिउ विचार, पठइं गुणई तीहं लच्छ अपार । ५४| 2 मालदेव नाम के एक प्रसिद्ध कवि १७वीं शताब्दी में हुए हैं, उनसे यह कवि भिन्न है । मुनि महानन्दि - आप भट्टारक वीरचन्द के शिष्य थे । आपने 'वारक्खड़ी दोहा अपरनाम पाहुड़ दोहा' लिखा जिसकी सं० १६०२ की लिखी प्रति आमेर के शास्त्र भंडार, जयपुर में सुरक्षित है । इसकी भाषा अपभ्रंश मिश्रित है लेकिन उच्चकोटि की आध्यात्मिक रचना है। इसमें कुल ३३३ दोहे हैं जिसमें नीति और अध्यात्म के साथ बीच-बीच में सरस दोहे भी है । यथा : खीरह मज्झह जेम घिउ, तिलह मज्झि जिम तिलु । कहि आग जिम वसइ तिम देहहि देहिल्लु ॥ २२ ॥ मुनि महानन्दि की रचना आनन्दतिलक का विवरण १४वीं शताब्दी में दिया जा चुका है । यह रचना भी उसी कोटि की है और अधिक सूक्ष्मता १. श्री अ० च० नाहटा, म० गु० जे० कवि पृ १०३ २. श्री मो० द० देसाई, जै० गु० क० भाग ३ खंड २ पृ० १४८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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