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________________ मरु-गुर्जर जैन सहित्य २६१ मांडण सेठ-आप एक श्रेष्ठी श्रावक कवि थे। आपने सं० १४९८ में 'सिद्धचक्र श्रीपाल रास' की रचना की। रास के अन्त में लेखक ने अपना नाम और रचनाकाल आदि दिया है अतः पहले सम्बन्धित पद्य उद्धृत किए जा रहे हैं : 'ज्यारि भव मर्त्यलोकि, ज्यारि होसि देवलोकि । तुमइ भवि पहुचिस्यु सम्हि मुगति पुरी। मूरष मांडणि भण्यु, रास सिद्धचक्र तणु । संषेपिउ कहिसु गुरुवचनि करी । सिद्धचक्र तणा गुण, बोलिय न जाणूपण । अह रास सहू भणु मुगति मारग तणु । रिद्धि वृद्धि नवनिधि जिम लहु । चऊद अट्ठाणवइ, कार्तिक मासि तीणइ । सुकलपक्ष पञ्चमी गुरु। भणता हुइ उल्हास । गुरुवचनि कीधु रास । कूडु खम हुइ संघ मया उद्धरु।' इसकी कुल पद्य संख्या २५८ है। इसका प्रथम पद्य वस्तु इस प्रकार है : 'रिसह सामीय र पठम जिणराय, नाभिराय कुलि अवतरिउ, जुगलधर्म निवारि कारण । मरु देव्या ऊपरि वरिऊ, सयल लोअ दुहदुरीय टालण । त्रिहु भुवनहिं उद्योतकर, प्रणामु मुगति दातार । इम जाणी पूजा करूं जिम पामउ भबपार ।१।' आपने इस रास में श्रीपाल की कथा का सुन्दर वर्णन काव्योचित ढंग से किया है । भाषा सरल मरुगुर्जर है।। ___माणिक्यसुन्दरसूरि-आप आंचल गच्छीय श्री मेरुतुग के शिष्य थे। श्री देसाई ने कवि का नाम माणिक्यसुन्दरसूरि और माणिक्यचन्द्रसरि दोनों दिया है । आपने संस्कृत, मरुगुर्जर आदि कई भाषाओं में कई रचनायें की हैं जिनमें चतुःपर्वी चम्पू, श्रीधर चरित्र सं० १४६३, शुकराज कथा और गुणवर्म चरित्र आदि उल्लेखनीय हैं । आप गुजरात के एक सामन्त शंख के सभापंडित थे । वहाँ उन्होंने ४ सर्गों में 'महावल मलय१. श्री मो० द० देसाई, जैन गुर्जर कवि भाग ३ पृ. ४३३-४३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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