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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
नामक काव्य की रचना की। श्री जिनोदय सूरि का आचार्य काल सं० १४१५ से १४३१ तक स्वीकृत है। श्री अ० च० नाहटा ने इसका रचना काल सं० १४२० के लगभग माना है।' यह रचना 'प्राचीन ऐ० ० काव्य संग्रह' में प्रकाशित है। इसमें जिनोदय सूरि का गुणगान किया गया है। इसका प्रारम्भिक छन्द इस प्रकार है--
"किणि गुणि सोववि तवण, सिद्धिहिका भति तुम्ह हो मुणिण ।
संसार फेरि डहणं, दिक्खा बालाणए गहण ।१। उसके आगे कवि का नाम इस प्रकार है :
पहराज भणइ तइ विन्नइ, अजउं भवणु किणि गुणि तबहि।" अपने गुरु के शील-संयम का बखान करता हुआ कवि लिखता है :
"कवणि कवणि गुणि थुण उं कवणि किणिमेय वखाणउं । थूलभद्द तह सील लब्धि, गोयम तह जाणउ । पाव पंक भउ मलिउ दलिउ कंदप्प निरुत्तउ । तुह मुनिवर सिरि तिलउ भविय कप्पयरु पहुत्तउ । जिण उदय सूरि मणहर रयण सुगुरु पट्टधर उद्धरण,
पहुराज भणइ इम जाणि करि फल मनवंछित सुहकरणु ।५।" छठाँ पद्य खंडित है । उसकी अन्तिम दो पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैं :
"जिण उदयसूरि गणहर रयणु सुगुरु पट्टधर उद्धरण। पहराज भणइ इम जाणिकरि सयल संघ मंगलुकरण" ।।
रचना का साम्प्रदायिक महत्व है और कवि की गुरुभक्ति का अच्छा उदाहरण है। इस प्रकार के धार्मिक साहित्य में गुरु का स्थान सर्वोपरि स्वीकृत है और जैन साहित्य में ऐसी रचनाओं की संख्या गणनातीत है ।
बच्छ भण्डारी--आपकी तीन रचनायें-'आदिनाथ धवल, नवपल्लव, पार्श्वनाथ कलश और मृगांकलेखारास' उपलब्ध हैं। आदिनाथ धवल का समय श्री नाहटा जी ने सं० १४७१ बताया है। श्री मो० द० देसाई ने इनकी दूसरी रचना 'पार्श्वनाथ कलश' को १६ वीं शताब्दी की कृति बताया है। उनका कथन है कि कवि बच्छ भंडारी देपाल का समकालीन मालम पड़ता है। इनकी रचनायें भी एक ही प्रति से प्राप्त हुई हैं और देपाल १. श्री अ० च० नाहटा-म० ग० जै० कवि पृ० ६६ २. प्रा० ऐ० जैन काव्य संग्रह पृ० ४० ३. श्री अ० च० नाहटा--म० गु० जे० कवि पृ० ८१
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