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________________ मर-गुर्जर जैन साहित्य २५३ का सहन करता हुआ अन्ततः अविचलित रहता हुआ अपने सदाचार से सारी बाधाओं पर विजय प्राप्त करता है। मयनासुन्दरी दिगम्बर मुनि के पास शिक्षा के लिए जाती है और अनेक विद्या और कलाओं के साथ संस्कृत भाषा, देशी भाषा के तीन छन्द-गाथा, दोहा और छप्पय का भी ज्ञान प्राप्त करती है। इस उल्लेख से कवि का संस्कृत और देशी भाषा के प्रति लगाव व्यक्त होता है। इस कृति की भाषा पर अपभ्रंश का प्रभाव भी पर्याप्त है अतः कवि अपभ्रंश का भी जानकार मालूम पड़ता है यथा-- "जिण वयणउ विणिग्गय सारी, पणविय सरसइ देवि भंडारी । सुकइ करतु कव्वु रसवतंउ, जसु पसाइ वुहयणु रंजत्तउ ।' आपकी दूसरी रचना 'वर्द्धमान कथा' में तीर्थंकर वर्द्धमान का चरित वर्णित है । यह कृति काव्यत्व की दृष्टि से प्रथम कृति की तुलना में न्यून है किन्तु इसमें तीर्थंकर भगवान का चरित चित्रित होने के कारण इसका धार्मिक महत्त्व अधिक है। इसकी भाषा वैसी ही अपभ्रंश गर्भित है जैसी 'श्रीपाल चरित्र' की है। अतः विशेष उद्धरण आवश्यक नहीं है। पद्मतिलक- आपने २८ छन्दों में 'गर्भ विचार स्तोत्र'1 नामक स्तोत्र लिखा है । इसमें गर्भवास के दुःखों का भयानक वर्णन किया गया है। यह कोट कांगड़ा के तीर्थंकर ऋषभनाथ की मूर्ति को लक्ष्य करके लिखी गई है। इस रचना में लेखक के जीवनवृत्त और गुरु परम्परा आदि पर कुछ. प्रकाश नहीं डाला गया है । इसकी भाषा मरुगुर्जर है । भाषा के उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैं-- "पुव पुण्य संजोगि पुणवि मणुवत्तणु पाविउ, विविह दुक्ख णव मास सडद गभिहिं संताविउ । रमणि नाभितलि नाल काटि दुई पुप्फहं अच्छइ । कोसागारिहिं ता मुहेंठि पुण जोनि पडित्थइ ।' पद्मानन्द सूरि--इसी समय ( १५ वीं शताब्दी ) आपने एक स्तोत्र 'श्री चउवीसवटा श्री पार्श्वनाथ नागपुर चैत्य परिपाटी स्तोत्रम्' (९ गाथा) नाम से लिखा है । आपकी दूसरी रचना एक स्तुति है जिसका नाम श्री चउवीसवटा पार्श्वनाथ स्तुति' ( गा० ४) है। इसकी तीसरी प्राप्त रचना का नाम 'श्री वर्द्धनपुर चैत्य परिपाटी स्तवनम् ( गा० ९) है। इन सबका विषय तीर्थंकरों की स्तुति और चैत्यों तथा बिम्बों की वन्दना है। भाषा नमूने के लिए कुछ उद्धरण आगे दिए जा रहे हैं :१. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० ५९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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