SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२ मरु-गुजर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पद्यों की भाषा देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये रचनायें लोकगीतों की तरह होती थी अतः इनकी भाषा बोलचाल के काफी करीब होती थी। ऐसी रचनाओं द्वारा तत्कालीन बोलचाल की स्वाभाविक लोकभाषा का अनुमान किया जा सकता है। नयचन्द्र--आप जयसिंह सूरि के प्रशिष्य और प्रसन्नचन्द्र सूरि के शिष्य थे। आपकी दो रचनायें सं० १४४० के आसपास की उपलब्ध हैं। उनमें "वीरांक हम्मीर महाकाव्य' प्रसिद्ध है । दूसरी रचना 'रम्भामंजरी' एक नाटक है। ये ग्वालियर के तोमरवंशी राजदरबार में कवि थे । आपके महाकाव्य का नायक हम्मीर है । इसमें हम्मीर के समकालीन राजाओं 'पृथ्वीराज आदि का भी वर्णन है। रंभामञ्जरी का नायक जयचन्द है जिसमें दो पृष्ठों में केवल उसका विशेषण-विरुद बखाना गया है। लेकिन इन दोनों पुस्तकों में पृथ्वीराज और जयचन्द का युद्ध, राजसूय यज्ञ और संयोगिता स्वयम्वर आदि का उल्लेख नहीं है । इसके आधार पर कई आलोचक पृथ्वीराज रासो की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं; परंतु सच पूछा जाय तो नेयचन्द्र की ये दोनों रचनायें भी इतिहास की दृष्टि से अधिक विश्वसनीय नहीं मालूम पड़ती। इसमें परमर्दिचंदेल, चौलुक्यराज भीमदेव और अन्य राजाओं के साथ पृथ्वीराज के युद्धों का वर्णन नहीं मिलता । रम्भामंजरी की भी अधिकतर घटनायें जयचन्द के प्रामाणिक इतिहास से कम मेल खाती हैं । इन दोनों कृतियों में ऐतिहासिक विवरण बहुत कम है और जो थोड़े से हैं वे प्रायः इतिहास सम्मत नहीं हैं। वीरांक हम्मीर महाकाव्य की भाषा डिंगल कही गई है किन्तु यह भी मरुगुर्जर की एक चारणशैली है । भाषा वैज्ञानिक अन्तर कम है। इसमें वीर और ऋङ्गार रस का यत्र तत्र सून्दर परिपाक हआ है।। नरसेन – 'श्रीपालचरित' और वर्द्धमान कथा नामक दो रचनायें आपने १५ वीं शताब्दी में लिखी हैं । इन्होंने अपनी रचनाओं में न तो रचनाकाल दिया है और न अपना परिचय दिया है, हस्तलिखित प्रति के आधार पर इनका समय अनुमानतः १५वीं शताब्दी स्वीकार किया गया है । श्रीपाल चरित्र में श्रीपाल और मयनासुंदरी की प्रेमकथा है। श्रीपाल अनेक सुंदरियोंसे विवाह करता है । कालान्तर में संजममुनि से अपने पूर्वभवों की कथा सुनकर उसे विरक्ति होती है और तपस्या करके वह निर्वाण प्राप्त करता है। इस कृति में कवि ने दिखलाया है कि सच्चा धार्मिक व्यक्ति अनेक आपदाओं १. श्री कामता प्रसाद जैन -हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy