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गुर्जर जैन साहित्य
" मृगमद कुंकुम नीरि वावन. चंदनि सींगी संपूरिए । नायक नेमि शरीरि बलि बलि, बलबलि करई ते छांटणु । इसी अपूरब रीतिगुण, रयणायर रामतड़ी रमइए ।
पूरइ मननी प्रीति, धनप्रभ गाइतां सवि सुख पामीइं ए । "1 धनपाल - आपकी चर्चा अन्य पूर्ववर्ती धनपाली के साथ की गई है ।' आपकी रचना 'बाहुबलि देवचरिउ सं० १४५४ की रची हुई मानी जाती है । आप गुजरात के पुरवाड वंशीय श्री सुहडप्रभ की धर्मपत्नी सुहडा देवी की कुक्षि से उत्पन्न हुए थे । इसमें १८ संधियां हैं जिनमें जैन धर्म के प्रथम कामदेव बाहुबलि का चरित्र अंकित किया गया है। यह रचना गुजरात के वासद्धर की प्रेरणा से लिखी गई । इसमें कवि ने अपने पूर्ववर्ती अनेक कवियों और विद्वानों का उल्लेख किया है । इस कृति के बीच बीच में संस्कृत के पद्य भी मिलते हैं जिनसे यह धारणा बनती है कि कवि न केवल मरुगुर्जर अपितु संस्कृत का भी अच्छा जानकार था ।
धनराज -- आपने सं १४८० में 'मंगल कलश विवाहल' १७० पद्यों में विरचित किया है । विवाहलु एक विशेष प्रकार के मंगलगीत हैं जो दीक्षा के अवसर पर गाये जाते हैं, इनकी भाषा सरल होती है । इन्हें कलश भी कहा जाता है । प्रस्तुत कलश में भी मालवा की उज्जैनी नगरी की शोभा और दीक्षोत्सव का वर्णन किया गया है । इसका प्रारम्भिक पद्य प्रस्तुतः किया जा रहा है
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"परम गुरु आदि जिण नमवि पभणेसु, मंगलकलश वीवाहलउए । पुहवि मनोहरो मालव देश नामि, परिणामि रलियामणउ ए । उज्जेणो वरनयर सुविशाल, पूरिय घण कण रयण खाणि । सिंधु अरिगंजणी दिल्य तण, भूपाल वयर सिंहा वर नरिंदो |१| "2 अन्त इसा करमनउ सुणउ विचार, मंगलकलश विरतउ संसारि देवलोक पंचमइ जिजाइ, भवि भीजइ वलिसिद्धि लहेइ । संवत्सर विक्रम नइ कही, चउदह सइ असीयइ ए सही, मंगलकलश चरितु सुविशाल, धन्नराजि इम कहिय विसाल । पढइ गुणइ एक मना सही, तिहि धरि आवइ नवनिधि सही । " 3 १. श्री अ० च० नाहटा 'परम्परा' म० गु० जे० कवि पृ० १०४ २. श्री अ० च० नाहटा म० गु० जै० कवि पृ० ८७
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वही
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