________________
मरु गुजर जैन साहित्य
२४७ तरुणप्रभ सूरि-आप प्रसिद्ध गद्य लेखक थे। १५ वीं शताब्दी में बोलचाल की गुर्जर भाषा में अनेक टीका ग्रन्थ, बालावबोध एवं गद्य ग्रन्थ लिखे गये जिनमें सं० १४११ में रचित आपकी गद्य रचना 'षडावश्यक बालावबोध' ऐतिहासिक महत्त्व की कृति है। इनके ग्रन्थों द्वारा तत्कालीन बोलचाल की भाषा का बास्तविक स्वरूप स्पष्ट होता है आप जिनचन्द्र सूरि और जिनकुशल सूरि के शिष्य थे। आपके विद्यागुरु यशःकीर्ति और राजेन्द्रचन्द्र सूरि थे। आपने षडावश्यक बालावबोध फिरोज शाह तुगलक के राज्यकाल में बाहड मन्त्री के प्रपौत्र ठाकुर बलिराज के आग्रह पर लिखा था। आपकी गद्य रचनाओं का विवरण गद्य के इतिहास के साथ यथास्थान विस्तारपूर्वक किया जायेगा। ___ आपकी पद्यबद्ध रचना बीस विहरगान जिन स्तवन' का उल्लेख श्री मो० द० देसाई ने किया है। इसकी हस्तलिखित प्रति ( सं० १४३० कार्तिक की लिखित ) श्री नाहटाजी के संग्रह में सुरक्षित है। श्री देसाई ने इसका कोई उद्धरण नहीं दिया है। आपने बारवत के ऊपर अनेक कथायें भी गद्य में लिखी हैं जो 'प्राचीन गूजराती गद्य संदर्भ' में संकलित हैं। गद्य खण्ड में इनका विवरण दिया जायेगा।
तेजवर्द्धन -आपकी रचना 'भरत बाहुबलीरास' का समय १५ वीं शताब्दी बताया गया है। श्री मो० द० देसाई ने अपने जैन साहित्य नो इतिहास पृ० ४८८ और जै० गु० क० भाग पृ० ३४ पर इस रचना का मात्र नामोल्लेख किया है किन्तु विवरण उद्धरण कहीं नहीं दिया। __ दयासागर सूरि-आपकी रचना 'धर्मदत्त चरित्र' का उल्लेख हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्येतिहास 'मिश्रबन्धु विनोद' में है। श्री मो० द० देसाई ने श्री जै० गु० क. भाग १ पृ० ३५ पर इसका उल्लेख किया है। मिश्रबन्ध विनोद के आधार पर श्री नाथूराम प्रेमी ने भी अपनी पुस्तक में इसका विवरण दिया है किन्तु श्री मो० द० देसाई ने जै० गु० क० भाग ३ पृ० ४३० पर लिखा है कि "पं० लालचन्द के अनुमानानुसार यह रचना माणिक्यसुन्दर सूरि द्वारा संस्कृत में लिखी हुई है। इसमें प्रसंगत कहींकहीं गुजराती-हिन्दी के पद्य अवश्य आ गये हैं । अतः रचना के विवादा
१. श्री मो० द० देसाई जै० गु० क. भाग ३ खण्ड १ पृ० ४४४ और भाग ३ खण्ड २ पृ० १४७६ २ श्री मो० द० देसाई-जैन साहित्यनो इतिहास पृ० ४८८
और देसाई जं. गु० क० भाग १ पृ० ३५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org