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________________ २४० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि "सुविहाणइ जइ आज मई दीठउं रिसह जिणेस, नयण कमल जिम उल्लसइ, ऊगिउ भलई दिणेस ।१" अन्त "इय कवित्त सुच्छंदिहिं, मन आणंदिहि जयसागर उवझाय किय, जो पढ़इ सुठाणिहिं मधुरिय वाणिहिं, सो नर पामइ सुखसय ।।।" इसमें साहित्यिक सौन्दर्य तो सामान्य कोटि का है किन्तु ऐतिहासिक सूचनायें असाधारण कोटि की उपलब्ध हैं जिनसे जैन धर्म और तत्कालीन बृहत्तर भारतीय जन-जीवन को समझने में सुगमता हो सकती है। इनकी सभी रचनाओं के उद्धरण देना या उनके विवरण प्रस्तुत करना अपनी सीमा के कारण सम्भव नहीं है। यहाँ तो उनकी पुस्तकों की सूचना, कुछ पुस्तकों के उद्धरणों द्वारा उनकी भाषा शैली का नमूना और समग्र रूप से उनके लेखकीय व्यक्तित्व का मूल्याङ्कन करना ही अभीष्ट है ।। जयसिंह सूरि -( कृष्णर्षीय ) आप कृष्णर्षि या कन्हरिसि के शिष्य थे अतः कृष्णर्षि या कन्हरिसि संतानीय जयसिंहसूरि कहे जाते थे। आपने सं० १४२२ में अपना प्रसिद्ध महाकाव्य 'कुमारपाल चरित' संस्कृत में लिखा था। मरुगुर्जर में लिखी आपकी दो फागु रचनायें उपलब्ध हैंप्रथम नेमिनाथ फागू और द्वितीय नेमिनाथ फागु। ये दोनों फागु श्री भोगीलाल सांडेसरा द्वारा सम्पादित प्राचीन फागु संग्रह में प्रकाशित हैं। इनका समय भी सं० १४२२ के आसपास ही होगा। पुराने समय से फागु रचना की दो पद्धतियाँ प्रचलित रही हैं । एक शैली के प्रतिनिधि श्री जिनपद्मसूरि और श्री राजशेखर सूरि हैं जिसमें कृति को भासों में विभक्त करके दोहा-रोला आदि छन्दों में लिखा जाता है। दूसरी शैली की प्रतिनिधि रचना 'वसन्त विलास फागु' है जिसमें आन्तर प्रास या आन्तर यमक वाले दोहों में पूर्ण काव्य रचना की जाती है। प्रस्तुत फागुओं में से प्रथम फागु प्रथम पद्धति की और द्वितीय फागु द्वितीय शैली की रचना है। प्रथम फागू में कूल २९ कड़ी है। इसमें नेमि के जन्म के बाद वसन्त वर्णन का प्रसंग लिया गया है। कवि लिखता है कि भ्रमर गुंजार करते हैं मानो ऋतुराज की विरुदावली बखानते हैं यथा :-- "भमइं भमर मधुपानमत्त झंकारु करंता, रितुरायह किरिभट्ट थट्ट वरकित्ति पढ़ता। पसरिउ परिमल मलइ वाउ दस दिसि पूरंतो, भामिणि कामिणि मनह मांनि तक्खणि चूरंतो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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