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________________ २२२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास और उसके स्थान पर गयासुद्दीन तुगलक के गद्दी पर बैठने के साथ-साथ तुगलक वंश के शासन काल का प्रारम्भ । इस प्रकार १४ वीं शताब्दी के तृतीय चरण से लेकर १५ वीं शताब्दी के तृतीय चरण तक दिल्ली में तुगलकों का शासन रहा। इनके शासनकाल के अन्तिम दिनों में अमीर तैमूर का आक्रमण देश के लिए सबसे भयंकर दुर्घटना सावित हुई। परिणामतः लड़खड़ाती हुई तुगलक शक्ति का पतन हो गया और दिल्ली की राजलक्ष्मी सैयदों के हाथ चली गई। ___ सांस्कृतिक पीठिका-इस काल में विभिन्न प्रदेशों में स्वतन्त्र राज्य स्थापित हए। बहमनी, विजयनगर, गुजरात, मालवा और जौनपुर के स्वतन्त्र राज्य इसी समय स्थापित हुए थे। इन स्वतन्त्र राज्यों में कला-साहित्य और धर्म-दर्शन की स्थिति संभली। विविध कलाओं में नवीन प्रान्तीय शैलियों का प्रादुर्भाव हुआ। फिरोज तुगलक असहिष्णु और अविवेकी बादशाह था। उसने अधिकारियों को नकद-वेतन देने के बजाय जागीर देने की प्रथा को प्रश्रय दिया। इन जागीरदारों ने साम्राज्य के भीतर अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए। वह स्वयम् अयोग्य था और खर्च का बोझ साम्राज्य पर बढ़ रहा था। फलतः प्रजा का शोषण बढ़ गया। सं० १४५६ में गुजरात की राजधानी अहमदाबाद बनाई गई। राजधानी बदलने में नाम से एकबार पुनः प्रजा कांपी थी किन्तु कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ। इस कठिन काल में जैन साधु और आचार्यों ने अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से शासकों को प्रभावित कर धर्मरक्षण एवं सम्बन्धित साहित्य-सृजन का महत्त्वपूर्ण कार्य बराबर जारी रखा। वे धर्म-ग्रन्थों की रचना तथा उनकी सुरक्षा का उपाय करते रहे। कृष्णर्षि गच्छ के महेन्द्र सूरि ने मुहम्मद शाह को अपनी निर्लोभ वृत्ति और अपरिग्रह भाव से काफी प्रभावित किया था। उसने भी इनकी महात्मा के रूप में बड़ी अभ्यर्थना की थी। इस सम्बन्ध में रणजीत राम का यह कथन सत्य प्रतीत होता है कि "अलाउद्दीन खिलजी के सरदारों ने जब गुजरात के हिन्दू राजाओं को पराजित कर दिया उस समय जो अंधाधुंधी और अव्यवस्था का समय आया उसमें ब्राह्मणों ने शारदा देवी की सेवा त्याग दी किन्तु मन्दिरों की रक्षा, धर्म की प्रभावना और शारदा देवी की उपासना में जैन साधु निरन्तर लगे रहे।' इस युग के जैनाचार्यों में खरतरगच्छीय जिनराज सूरि ने १. श्री मो० द० देसाई जैन-साहित्यनो इतिहास पृ० ४४८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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