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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य २२१ (सिन्ध ) चला गया। सुल्तान भी थट्टा की तरफ रवाना हुआ किन्तु रास्ते में बीमार पड़ा और सं० १४०८ में उसका देहान्त हो गया। यह एक असफल शासक समझा जाता है और नये सिक्के चलाने, राजधानी बदलने जैसे कार्यों के कारण पागल भी समझा जाता है किन्तु वह प्रतिभावान, सहिष्णु और ईमानदार व्यक्ति था। उसमें धार्मिक कट्टरता नहीं थी। गुजरात के महान् जैनाचार्य जिनप्रभसूरि सं० १३८५ में इससे मिले थे। उसने इन्हें पर्याप्त सम्मान दिया था तथा जैन धर्म की उन्नति के लिए अनेक आदेश जारी किए थे। वह उदारतापूर्वक धन दान भी देता था। उसके शासन काल में जैन धर्म के लिए सरकारी वातावरण पूर्णतया अनुकूल रहा। उसके बाद फिरोज तुगलक सं० १४४५ तक शासन करता रहा, इसके स्थिर शासन-काल में १५ वीं शती का पूर्वार्द्ध रोजी, व्यापार और प्रजा के जीवन यापन के कार्य कलापों के लिए सुविधाजनक था। इसकी मृत्यु के बाद गद्दी के दो दावेदार हो गये और परस्पर छीना-झपटी करने लगे। सं० १४५१ में मुहम्मदशाह गद्दी पर बैठ गया किन्तु नसरत खाँ गद्दी हथियाने की जीतोड़ कोशिश करता रहा। केन्द्रीय सत्ता विभाजित और कमजोर हो गई। मौंका पाकर गुजरात, मालवा के सूबेदार स्वतन्त्र हो गये। सं० १४५५ में तैमूरलंग भारत पर चढ़ आया। वह बड़ा क्रूर और महत्वाकांक्षी था। उस खंखार लुटेरे ने कत्लेआम और जमकर लट-पाट की। अगणित लोगों को दास बनाया। कहा जाता है कि प्रत्येक सैनिक को बीसों दास-दासियां मिली थीं। मुहम्मदशाह युद्ध क्षेत्र से भागकर गुजरात की तरफ चला गया और तैमूर के जाने के बाद पुनः दिल्ली लौटा। सं० १४६९ तक किसी प्रकार वह गद्दी पर बना रहा । उसकी मृत्यु के साथ ही तुगलक वंश समाप्त हो गया और सैयद खिज्रखां ने सैयद वंश की नींव डाली। इस प्रकार राजनीतिक दष्टि से १५ वीं शताब्दी के तीन चरणों में दिल्ली सल्तनत पर तुगलक वंश का शासन रहा और उनकी नीतियां ही देश की सामाजिक स्थितियों का निर्धारण करती रहीं। इस शताब्दी के अन्तिम चरण में तैमूर का आक्रमण, तुगलक वंश का अन्त और सैयद वंश की स्थापना महत्त्वपूर्व राजनीतिक घटनायें हैं जिनका भारतीय जन-जीवन पर व्यापक एवं दूरगामी प्रभाव पड़ा। १४ वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत में दो क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए थे। सं० १३७७ में मुबारक शाह के वध के साथ खिलजी वंश का अन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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