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मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दिया गया है । 'कलश' नामक काव्यरूप के कई उदाहरण मरुगुर्जर जैन कवि में संकलित है जिनसे अनुमान होता है कि यह काव्य विधा शायद उस समय लोक प्रचलित थी। बोली और धुल संज्ञक एकाध रचनायें ही उपलब्ध हुई हैं जैसे स्थूलिभद्र बोली । गाथा २८) अज्ञात कवि कृत रचना है ।। मंत्री धारिसिंह कृत श्री नेमिनाथ धुल का परिचय दिया गया है यह शायद धवल की रूपान्तर है। इस काल में तलहरा' संज्ञक एक ही रचना प्राप्त हुई है और संभवतः इसकी परम्परा आगे नहीं चल पाई । अज्ञात कवि कृत 'अम्बिका देवी पूर्व भव तलहरा' नामक ३० पद्यों की इस रचना को श्री अ० च० नाहटा जी ने 'हिन्दी अनुशीलन' में प्रकाशित कराया था।
१. श्री अ० चं नाहटा-जै० म० गु० क० पृ० ४७
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