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________________ मरु-गुजर जैन साहित्य २१५ श्री अगरचन्द नाहटा ने अज्ञात कवि कृत एक रचना मातृका बावनी' की सूचना दी है। मातका चउपइ और मातका बावनी अलग अलग रचनायें हैं जैसा कि दोनों के आदि और अन्त के छन्दों से स्वतः स्पष्ट है। 'मातृका बावनी के आदि और अन्त की पंक्तियाँ मिलान के लिए प्रस्तुत की जा रही हैं : आदि "भले भणं माइ धरु जोइ, धम्मह मूल सुसमकतु होइ। ___ समकतु विणु जा क्रिया करेइ, तातह लोहि नीरु धालेइ।' अर्थात् सम्यकत्व के बिना सभी क्रियायें वैसे ही काफूर हो जाती है जैसे गर्म तवे पर पड़ी जल की बूंदें क्षण भर में छनछना कर लुप्त हो जाती हैं। इसका अन्तिम पद्य देखिये : .. "एहु विचारु हियइ जो धरइ, सूधउं धम्म विचारिउ करइ । सुहगुरु तणा चलण सेवंति, ते नर सिद्धि सुक्खु पावंति । जइ संसारु तरवेउ करउ, सतगुरु तणा वयण अणुसरह । जइ संसारह करिसउ छेहु, सुद्धं धम्म विचारिउ लेहु ।' चौदहवीं शताब्दी में बोली, कलश, स्तवन और स्तोत्र जैसी छोटी. छोटी अनेक रचनायें अज्ञात कवियों द्वारा लिखी हुई प्राप्त हैं जिनका विवरण श्री अ० च० नाहटा ने 'मरुगुर्जर जैन कवि' में दिया है । आदिनाथ बोली, श्री नेमिनाथ बोली (गा० ७) श्री स्थूलिभद्र बोली (२८ गा०) आदि बोली काव्यविधा के साथ कई कलश जैसे श्री युगा दिदेव जन्माभिषेक कलश ( गाथा २०) श्री चन्द्रप्रभ स्वामिकलश ( ११ गा) श्री वासुपूज्य कलश ( गा०८), शान्तिनाथ कलश ( गा० १०), श्री वीरजिण कलश ( गा० ५ ) सर्वजिन कलश आदि कलश सम्मिलित हैं। स्तवनों के अन्तर्गत सीमधर स्वामी स्तवनम्, कोका पार्श्वनाथ स्तवन (गा० ३०), गिरनार तीर्थ स्तवनम्, जिनस्तवना, साऊका पार्श्वनाथ स्तवनम् के अलावा तमाम पद, गीत, वीनती नामक रचनाओं का विवरण उक्त ग्रन्थ में देखा जा सकता है। उन्हें ज्यों का त्यों दुहराने से कोई लाभ नहीं है। भाषा के नमूने के लिए उक्त रचनाओं से दो-चार उदाहरण यहाँ उद्धृत किये जा रहे हैं। इनमें से किसी की भाषा पर अपभ्रंश का मुलम्मा और कहीं मरुगुर्जर पर संस्कृत का पानी चढ़ाया गया है । संस्कृत की गमक निम्न पंक्तियों में देखिये :-- "देव देविंद विदेंण गिरि मन्दरे देव चन्दप्पह स्सामिणौ सुन्दरे । जम्म मज्जण महो जह समारंभिओ, किंपि जंपेमि संपइ तहाँ विम्हिओ ।" १. श्री १० च० नाहटा-म० गु० जे० कवि पृ० ३८ । २. श्री चन्द्रप्रम स्वामी कलश-वही पृ० ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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