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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य २१३ "श्री जिनवर पाओ नमी प्रणमी मुनिराय । शरणागत हूँ आवीऊ स्वामी तम्ह पाय । वीर जिणेसर वीनवं करउसेवक सहकार । बार बिलंब खमइ नहीं तीं जगि आधार । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार है :___ "सकल हुज्यो मन वीनती होज्यो स्वामी सेव । सद्गुरु पाओ सेवा हुज्यो भवि भवि हव देव ।६७।। इसकी प्रतिलिपि जस विजय संग्रह से प्राप्त हुई। अज्ञात कवि कृत 'कर्मगति चौपइ' में जैन धर्म के मुख्य सिद्धान्त 'कर्मविपाक' के महत्त्व को बताया गया हैं । इसमें कुल ३८ छन्द हैं । इसका प्रथम छन्द मंगलाचरण है यथा : "वीर जिणेसर पाय नमेवि, समरऊं अंबिक सासण देवि । सरसति मुझ मति दइ सारदा, कवीयण नाम जयई तुझ सदा ।। स्वामिणि वर्णिसु कर्म प्रबन्ध, जेहना मोटा घणा संबन्ध । जीव योनि चउरासी लाख, सह विगूचइ कर्म विपाक । इसका अन्तिम पद्य भाषा के उदाहरण स्वरूप उद्धृत किया जा रहा है "वर्धमान श्री वीर जिणंदा, जस पइ सेवई सुरनर इंदा। गुण अनंत गुरअडि तुझ तणी, वीतराग तुं त्रिभुवन धणी। करूं बीनती बे कर जोडि आठ कर्म वंधण मुझ छोडि । तुंहजि दयापर देव जिणंद सेवक नइ मति करि आणंद ।३८." अज्ञात कवि कृत 'रत्न शेखर रास' या 'चतुःपर्वी रास' एक बड़ी रचना है । इसकी प्रति में २६८ पद्य हैं । इसमें दोहा, चौपाई के साथ कई प्रकार के देशी, ढाल आदि का प्रयोग किया गया है किन्तु रचनाकाल या अन्य विवरण नहीं दिये गये हैं। इसका प्रथम दोहा देखिये : "सयल सिद्धि मन शुद्धि नमी तीर्थंकर जिनराय । चौसठि सुरवर भत्तिम्भर नर्मि निरंतर पाय । इसका अन्तिम पद्य प्रस्तुत है :१. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ४०९ २. वही पृ० ४१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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