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________________ २१२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास के जयशेखर सूरि नायउरि गये और उनके उपदेश से वैराग्यवान होकर बालक ने उनसे दीक्षा ली। इस संधि में इन घटनाओं के साथ हेमतिलक सूरि के संयम, तप, विहार और शरीर त्याग तक का वर्णन मिलता है । रास के विषयवस्तु और भाषा का परिचय देने के लिए दो छन्द आगे प्रस्तुत हैं : "मुणिहिं मुणीतइ समइ सुहारसि । बारहत्तरइ माह बदि बारसि ।। गच्छ सीख देविणु मुह चित्तू । हेमतिलक सूरि दिव संपत्तू । जसु महिम करतंह गणि गुणवंतह, जिण सासणु उज्जोइयओ। सो गुरु निअ गच्छहं अणु मुणि सत्थहं संघहमण वंछिय दियओ। यह कृति 'परिषद पत्रिका' में प्रकाशित है। इसकी प्रति अभय जैन ग्रन्थालय में सुरक्षित है । इसकी भाषा में कहीं-कहीं व्यञ्जनलोप की प्रवृत्ति के अलावा अपभ्रंश का अनावश्यक प्रभाव लक्षित नहीं होता। इसमें मरुगुर्जर भाषा का सहज आभास मिलता है। अज्ञात कवि कृत 'युगवर गुरु स्तुति' ( गाथा ६ ) १४ वीं शताब्दी की रचना है जिसे जिनचन्द्र सूरि के किसी अज्ञात शिष्य ने लिखा है । इसके प्रथम छन्द में ही जिनचन्द्र सूरि के सम्बन्ध में पर्याप्त सूचनायें हैं, यथा : "देधा कुलि सिरि देवराय मंती सुपसिद्धउ । कोमल देवि कलत्त तासु सीलहि सुपसिद्ध उ । तास पुत्त सिरि खंभराउ बालुवि गुण सायरु । लइय दिक्ख गुरु रायपासि, सिक्खइ किरियाकरु । जाबालि नयरि वीरह भुवणि जिण पवोह गुरु चक्कवइ । जिणचंद सूरि तसु नामु धरि गुरु उच्छव नियपयठवइ ।" इसका अन्तिम छन्द आगे उद्धृत है जिसकी भाषा पर अपभ्रंश का पूरा प्रभाव प्रकट होता है : "गणहर सुहम्म सामिय पमुह दुप्पसह सूरि पज्जते । बंदे कय कल्लाणे गुणप्पहाणे गुण विहाणे ।६।" इसका अनुमानित रचना काल सं० १३४१ के आसपास होना चाहिये। अज्ञात कवि कृत 'अंतरंगरास' ( ६७ कड़ी ) भी इसी समय की कृति है। इसका प्रथम छन्द निम्नाङ्कित है : १. श्री अ० च० नाहटा-म० गु० ज० कवि पृ. ३० २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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