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मरु-गुर्जर जैन साहित्य (वांछो १) अज्ञात--'बारबत चौपइ।' गाथा ४३ का विवरण श्री मो० द० देसाई ने दिया है । इन्होंने लेखक का नाम बांछो अनुमानित किया है। चौपइ का प्रथम छन्द निम्नाङ्कित है :---
"बीर जिन चरण जुग भगति स्यु बन्दीउ । तासु मुह पेखि भुझ हिअय आणंदिउ । धम्म विहु भेदि जिण नाहि पचडीकउं ।
सुगुरु वयण मह सवण-वस मांगउं । यह रचना ढालों में बद्ध है। इसकी भाषा के उदाहरणार्थ दो पद्य आये उद्धृत हैं :
"मई लद्धऊ जिण-धर्मसार, जिणि लही भवजल निहि पार । इम पालिज्जइओ अनतिचार, ओ आपइ अनुक्रमि सिव उदार ।४९।" इसका अन्तिम पद्य इस प्रकार है :----
“संविभाग प्रलि वरसना, जोग छतइ पणवीस ।
उदय हुइ सर्व विरतिनु, हुं वंछ उ ते दिन जगदीस ।४३।" इस छन्द में आये 'वंछ उ' शब्द से ही शायद श्री देसाईजी ने लेखक का नाम बांछो अनुमानित किया है किन्तु यह कामना के अर्थ में भी प्रयुक्त हो सकता है। - अज्ञात कवि कृत 'स्तम्भतीर्थ अजित स्तवन' २५ गाथा की रचना सं० १३४१ में हुई है। इसकी प्रतिलिपि श्री अ० च० नाहटाजी के संग्रह में है। इसका प्रथम पद्य निम्नाङ्कित है :__ "लावन्नमय कलियं सोहग्ग विलास बंधुरं धणियं ।
पणमेविण जिण भजियं तस्से भणामि किं चरियं ।" इसकी भाषा पर संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट है । इसका अन्तिम छन्द देखिये जिसमें रचनाकाल का संकेत भी है--
"जो नयरि पल्हणि सूरि जिणेसर हत्थि कमलि पयट्ठिऊ । विक्कम तेरह ईगुणवीसइ बहुय देव अहिट्ठिऊ । तित्तीस भूरि गुरुव असहि खंभ नयरि समाणिउ । इकताल वच्छरि देव मंदिरि देव सुविहि संघि निवेषिउ ।२४।"
खंभात ( स्तम्भतीर्थ ) में अजित भगवान् की प्रतिष्ठा का उल्लेख इसमें मिलता है। रचना सामान्य कोटि की है । भाषा में एकरूपता नहीं है । कहीं संस्कृत की तो कहीं अपभ्रंश की छाप दिखाई देती है।
१. श्री मो० द० देसाई -जै० गु० क० भाग ३ खड २ पृ० १४७५ २. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ खड १ पृ० ४०२
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