SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मह-गुर्जर जैन साहित्य २०७ छन्द सं० पाँच से बीसवें छन्द तक प्रति के त्रुटित होने के कारण मदन विजय प्रसंग नहीं छप पाया है। अज्ञात कवि कृत 'श्री जिणचन्द्र सूरि चतुष्पदी' १० गाथा की कृति भी जिणचन्द्र सूरि पर ही आधारित है। इसका आदि और अन्त उद्धृत किया जा रहा है :आदि "पहिलङ प्रणमउ वीर जिणिंदु, जसुपय सेव करइ अमरिंदु । युग प्रधान जगि हूयउ नामि, तसु पट्टि श्री सोहम सामि ।। अन्त "मेरु महीधरु जा गिरि सारु, महियलि जा जिणि धम्म विचारु । जावय चंदु सूरु दिप्पंतु, तिम जिणचन्द सूरि भवि जयवंतु ।" अज्ञात कवि कृत 'सप्तमत्रो रास'- इस प्रकार की रचनाओं में विशेष उल्लेखनीय है । यह 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' में प्रकाशित है। इसमें रचयिता का नाम स्पष्ट नहीं है किन्तु लगता है कि इसके लेखक जयवन्त होंगे। इसकी रचना का समय स्पष्ट इंगित है यथा :-- "संवत तेर सत्तावीसए माह मसवाडउ, गुरुवारि आवीय दसमि पहिलइ पखवाडइ।" अर्थात् यह रास सं० १३२७ माह सुद १०, गुरुवार को लिखा गया था। इसकी कुल पद्य संख्या ११९ है । इसमें जैन धर्म के सात पवित्र क्षेत्रों-जिनमूर्ति, जिनमन्दिर, जैनशास्त्र, साधु, साध्वी और श्रावकश्राविका का महत्त्व बताया गया हैं । ये उत्तम क्षेत्र हैं जहाँ लगाया हुआ धन कई गुना पूण्य पैदा करता है। दोहे-चौपाइयों में लिखा यह रास म गुर्जर भाषा के प्राचीन रूप का उत्तम उदाहरण है । काव्यत्व की दृष्टि से यह सामान्य कोटि की कृति है । सात क्षेत्रों का उल्लेख करता हुआ कवि लिखता है :-- "इह सातइ क्षेत्र इम बोलिया आगम अणुसारे।" रचना के प्रारम्भ की पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं :-- 'सवि अरिहंत नमेवी सिद्ध सरि उवझाय, पनरकर्म भूमि साहू तीह पणमिय पाय । जिण सासण मांहि जा सारो, चउदह परवतण र समुधारो। समरिउ पंच परमिष्टि नवकारो, सप्तक्षेत्रिहिव कहउ विचारो। १. देखिये प्राचीन फागु संग्रह २. श्री अ० च० वाहटा म० गु० जै० क० पृ० २८ ३. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह पृ० ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy