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मरु गुर्जर जैन साहित्य देखते इसकी भाषा को स्वाभाविक मरुगुर्जर नहीं कहा जा सकता । इसका विषय तो शीर्षक से ही स्पष्ट है। इसमें २४ तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। ___ शा.न्त सूरि--आपकी कृति का नाम 'सीमधर स्तवनम्' है, इनका समय १४ वीं शती है। शान्ति सूरि नामक कई महापुरुष जैन इतिहास में हो गये हैं । चन्द्रगच्छ, नागेन्द्रगच्छ, पूर्णतल्लगच्छ, सांडेरगच्छ, खंडेरकगच्छ आदि भिन्न-भिन्न गच्छों में कई शान्ति सूरि हुए हैं। इनमें कुछ कवि और लेखक भी हैं। इनमें से 'जीव विचार' नामक ग्रन्थ के कर्ता शान्ति सूरि अधिक प्रसिद्ध हैं । प्रस्तुत स्तवन के लेखक इनमें से कौन शान्ति सूरि हैं यह निर्णय नहीं हो पाया है। इस रचना में कुल ८ गाथायें हैं उनमें से पहली और आठवीं गाथा भाषा के उदाहरण स्वरूप उद्धत की जा रही है। इसमें सीमंधर स्वामी का स्तवन किया गया है। आदि "जंबूवर दीवह महाविदेह, सूणि घणि घणहां सय पंच देहु।
सीमंधर स्वामी विहरमाण, वसहंक-सयर सोवन्न माण ।१।" अन्त "संदेशे ओलग करउ देव, ऊमाहउ हीय न माइ हेव ।
ईणि खेमि वसंता बँति प्ररि, दय मुक्ति भणय श्री शांति सरि८11 इसकी भाषा निश्चय ही सरल मरुगुर्जर है और कवि १४ वीं शती का प्रतीत होता है किन्तु कवि के सम्बन्ध में निश्चित विवरण प्राप्त नहीं है। ____ सहज ज्ञान-आप खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनचन्द्र सूरि के शिष्य थे। आपने अपने श्रद्धेय आचार्य को लक्ष्य करके ३५ गाथाओं की 'श्री जिनचन्द्र सूरि विवाहल उ' नामक रचना लिखी जिसमें आचार्य श्री की संयम श्री के साथ परिणय का रूपक प्रस्तुत किया गया है। यह रचना १४ वीं शताब्दी की है किन्तु इसका रचनावर्ष निर्णीत नहीं है। इसकी प्राप्त प्रति में रचना की आदि के दो छन्द खंडित हैं, अतः इसका चौथा पद्य नीचे उद्धृत किया जा रहा है :--- "विविह विन्नाण वर घम्म कम्म जुया, रहेए स्वधर गेह लच्छी। सीलगुण धारिणी तासु सहचारिणी, सरसइ महुर झुणि वीण पाणि ।४। - इसका अन्तिम ३५ वा पद्य इस प्रकार है :-- "एहु जुगपवर वीवाहल उ जे पढ़इ, जे दियइ भाविया रंगभरे । तास सासण सुरा हुंति सुपसन्न, सहजज्ञान मुनि इम भणए ।३५।"" १. श्री अ० च० न हटा- मरुगुर्जर जैन कवि पृ० ५४ २. श्री १० च० नाहटा- मरुगुर जैन कवि पृ० २८
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