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________________ १९८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इनकी दो अन्य रचनाएं भी प्रकाशित हैं; उनमें से एक 'रात्रिभोजनं' में रात्रिभोजन के दोषों पर प्रकाश डाला गया है और दूसरी 'रहनेमी राजीमती' तो जैनजगत् की अति लोकप्रिय कथा 'नेमिराजमती' पर आधारित है। अतः इसकी काव्योचित सरसता स्वयंसिद्ध है। बिनयचन्द्र सूरि-आप श्रीरत्नसिंह सूरि के शिष्य थे। आपकी रचित 'नेमिनाथ चतुष्पदिका' 'बारव्रतरास' और 'आनन्द प्रथमोपासक संधि' नामक मरुगुर्जर की रचनायें उपलब्ध हैं। आपकी प्रथम रचना 'नेमिनाथ चतुष्पदिका' प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह में प्रकाशित है। यह ४० पद्यों की रचना है। इस बारहमासे में कवि ने राजीमती के पति-विरह का काव्यमय वर्णन बड़े सरस ढंग से किया है। यह बारहमासों की परम्परा में काफी प्राचीन है जिसमें श्रावण से प्रारम्भ करके आषाढ़ मास तक होने वाले राजुल के विरह कातर मनोभावों एवं प्रकृति के उद्दीपन विभावों का मनोहर वर्णन किया गया है। श्रावण का वर्णन देखिये : "श्रावणि सरवणि कंडुय मेह गज्जइ, विरहरि झिज्झई देहु । विज्जु झबक्कइ रक्खसि जेव नेमिहि विणु सहि ! सहियइ केम ।" इसका फाल्गुन वर्णन जायसी के वियोग वर्णन की भाँति अत्यन्त मार्मिक बन पड़ा है, यथा "फागुण वागुणि पन्न पडंति, राजल दुरिक कि तरु रोयँति । गब्भि भलिवि हउं काइ न मूय, भणइ विहंगल धारणि धूप ।२३।" इस बारहमासे की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :-- "सोहग सुन्दरु धण लावन्तु, सुमरिव सामिउ सामलवन्नु । सखि पति राजल चडि उत्तरिय, बार मास सुणि जिम वज्जरिय ।१।" और इसकी अन्तिम पंक्तियाँ निम्नाङ्कित हैं :-- "निम्मल केवल नाणु लहेवि, सिद्धि सामिणि राजल देवि, रयणसिंह सूरि पणमवि पाय, बारहमास भणिया मइभाय ।४९।" आपकी दूसरी रचना 'बारव्रत रास' सं० १३३८ में लिखी गई। यह ५३ पद्यों की रचना है । इसके अन्त में इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है :-- "तेरसइ आठ त्रीसी सावय धम्मुव अस सवि, रयणसिंह सूरि सीसि विनयचन्द्र सूरि उद्धरीय । १. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह 'नेमिनाथ चतुष्पदिका' संख्या २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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