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मरु गुर्जर जैन साहित्य न कहीं अन्यत्र ऐसा उल्लेख मुझे मिल सका है अतः सहसा उसे स्वीकार करना कठिन होने के कारण इसे मुनिराजतिलक के नाम पर ही रहने दिया गया है। इसकी भाषा का नमूना या उद्धरण नहीं प्राप्त हो सका किन्तु बृहद् इतिहास में इसे मरुगुर्जर की रचनाओं के साथ परिगणित किया गया है अतः यह मरुगुर्जर की रचना मानी गई है। श्री भंवरलाल नाहटा ने इसे राजस्थानी की रचना कहा है।
राजकीति-आपकी रचना 'चउवीसजिनस्तवन (गाथा २५) १४ वीं शताब्दी की रचना मानी जाती है, किन्तु श्री देसाई ने राजकीर्ति के नाम के आगे प्रश्न चिह्न लगा कर छोड़ दिया है और उनसे सम्बन्धित कोई विवरण नहीं दिया है। उन्होंने नाहटाजी के पास सुरक्षित एक प्राचीन प्रति के हवाले से इसके आदि और अन्त के पद्य उद्धृत किये हैं जिन्हें ययावत् यहाँ उद्धृत किया जा रहा है-- आदि "उज्ज्वल केवल नाणधर, रिसहेसर तुह पाय ।
पय दिण पणमउँ जेम मुज्झु इय निम्मल हुइ काय ।" अन्त "इय प्रासादिहि थुणियमइ, जे सवे मज्झार ।
च उवीसवि जिण कुणउसिव, राइँकित्ति वित्थार ।२५।" इन दो पद्यों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह रचना मरुगुर्जर की है।
राजवल्लभ-श्री हरिप्रसाद गजानन 'हरीश' ने 'गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी को देन' नामक पुस्तक में राजवल्लभ की कृति 'थलिभद्दफाग' का उल्लेख किया है और इसका रचनाकाल सं० १३४० बताया है।' कवि और उसकी कविता के सम्बन्ध में उन्होंने कोई सूचना नहीं दी है। अन्य साहित्येतिहास ग्रन्थों में भी सम्बन्धित विवरण उपलब्ध न हो सकने के कारण सम्प्रति यह सूचना मात्र ही प्रेषित है।
रामभद्र-आपकी रचना 'शान्तिनाथकलश' ( १० गाथा ) को श्री नाहटाजी ने १४ वीं शताब्दी की कृति बताया है। उन्होंने इसके आदि और अन्त के पद्य ही उद्धृत किये हैं । वे इस प्रकार हैं
१. श्री मो० द० देसाई-० गु० ऋ० भाग ३ खण्ड १ पृ० ४०७ २. डॉ. हरीश, गु० ज० कवियों की हिन्दी को देन, पृ० २५७
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