SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वर्णनों में वसंतपुर में बसने वाले २४ 'व' कारों का वर्णन, वृक्ष-वनस्पतियों का वर्णन भी मनोहर है यथा : " वणिकु वंभण वइद वासीठ, वाढइ, वेसा, वरुड वंदराविवारी विहारहं । १९२ 'तह वसंतपुर रल्ह कइ छइ चउवीस वकार । ३७। इसका अन्तिम छन्द निम्नलिखित है : " जो जिणदत्त कउ सुणइ पुराणु. तिसको होइ णाणु निव्वाणु । अजर अमर पउलहइ निरुत्तु, चवइ रल्ह अभइ कउ पुत्तु । गय सत्तावन छहसय मांहि, पुन्नवंत को छापइ छांह । तक्कु पुराण सुणिउ नउ सत्थ, भणइ रल्हू हउ ण मुणउ अत्थु ।" अर्थात् छह सौ में ५७ छन्द कम कुल ५४३ छन्द संख्या है इसे जो सुनेगा वह निश्चित अजर अमर पद प्राप्त करेगा । रह ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है : " जइसवाल कुलि उत्तम जाति, वाईसइ पाउल उतपाति । पंचऊलिया आते कउपूतु, कवइ रल्हु जिणदत्त चरितु । "1 मुनि राजतिलक - आप जिनप्रबोध सूरि के शिष्य थे । आपने सं० १३३२ में ३५ पद्यों की एक छोटी रचना 'शालिभद्र रास' लिखा । इसमें शालिभद्र के भोगी से योगी बनने की प्रेरणास्पद कथा कही गई है । शालिभद्र राजगृही का एक सम्पन्न श्रेष्ठी था । वह बड़ा विलासी था किन्तु अन्त में बड़ा संयमी बन गया था । इसकी भाषा में राजस्थानी प्रयोगों की अधिकता है । यह जैनयुग वर्ष २ में प्रकाशित रचना है । हिन्दी साहित्य के वृहद् इतिहास के खंड ३ में इसे पृ० ३२२ पर मुनि राजतिलक की रचना कहा गया है । राजतिलक जिनप्रबोधसूरि के शिष्य बताये गये हैं । श्री अगर चन्द नाहटा और श्री मो० द० देसाई ने अपने ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं किया है । श्री भँवरलाल नाहटा ने पार्श्वनाथ विद्याश्रम के स्वर्णजयन्ती के अक्सर पर राजस्थानी एवं हिन्दी जैन साहित्य की गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए शालिभद्ररास ( सं० १३३२ ) को जिनप्रबोध सूरि की रचना बताया है । " चूँकि नाहटा जी ने ऐसा कोई आधार नहीं दिया है जिससे यह रचना मुनिराज तिलक के बजाय उनके गुरु जिनप्रबोध सूरि की सिद्ध हो और १. हिन्दी सा० का बृ० इतिहास भाग ३ पृ० ४०३ २. पार्श्वनाथ विद्याश्रम स्वर्ण जयन्ती स्मारिका पृ० ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy