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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य १८९ मोदमदिर - आप खरतर गच्छीय कवि थे । आपकी दीक्षा सं० १३१० में हुई थीं । इन्होंने 'चतुर्विंशति जिनचतुष्पदिका' नामक २७ छन्दों की एक रचना की है जिसका रचनाकाल १४ वीं शताब्दी का अन्तिम चरण माना जाता है । यह रचना 'चउपइ' छन्दों में लिखी गई है ।1 अन्य विवरण नहीं प्राप्त हो सका है । 2 मंडलिक- आपने सं० १३६० के आसपास 'पेथड़ रास '" की रचना की । ६५ पद्यों की इस रचना में पोरवाडवंशीय श्री पेथड साह का चरित्र चित्रित किया गया है । श्री भोगीलाल सांडेसरा इसे सं० १३६० के आसपास की रचना मानते हैं किन्तु श्री मो० द० देसाई इसे १५ वीं शताब्दी के प्रारम्भ की रचना बताते हैं । मुझे श्री सांडेसरा का मत इसलिए अधिक समीचीन लगता है क्योंकि रासनायक संघपति पेथड़साह १४ वीं शताब्दी के महापुरुष थे और इन पर आधारित रचना १४ वीं शताब्दी की ही होनी चाहिये । आप चंडसिंह के पुत्र थे । आबूतीर्थ पर स्थित लूणिगवसही का आपने जीर्णोद्धार कराया था । आदि प्रस्तुत रास की भाषा प्रभावशाली मरुगुर्जर है । भाषा के उदाहरणार्थ इसके आदि और अन्त से कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैं"विणय वयणि वीनवउं देवि सामिणि वागेसरि । हंसगमणि आकाश भमणि तिहूयण परमेसरि । वीर जिणिदह नमीय चलण चउविहु श्री संघहिं । कवड जक्ख जक्खाधिराज समरीय मनरंगिहिं ॥" सोमनाथ चदपह वंदीय देखीउ वलीउ जाम । दिउ पीयाणं हिवमन रहिसउ, मंडलिक भणइइमि ॥ तहि नाचिन ० दिउ पीयाणं वेगि तहिं हरीयाला सूडा रे सूरवाहे संपत्त मनीला सूडा रे । प्राग्वाट वंश मौक्तिक व्य० पेथड रास समाप्त | 3 अन्त जैन समाज में एक अन्य पेथड कुमार या पृथ्वीधर की भी बड़ी ख्याति है जो उपकेश वंशीय देद नामक बनिया के पुत्र थे, परन्तु सुवर्ण सिद्धि योग की प्राप्ति से देद बड़े सम्पन्न हो गये थे । इनके सुपुत्र पेथड बड़े १. श्री ४० च० ना० 'परम्परा' पृ० १७३ २. प्रा० गु० का० संग्रह, पृ० १५९ पर प्रकाशित । ३. श्री मो० द० देसाई -- जै० गु० क० १ पृ० ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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