SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कथाप्रबन्ध 'प्रबन्ध चिन्तामणि' के नाम से लिखा। जैन ग्रन्थकारों में चरित्र लिखने की पद्धति पुरानी है जिनमें मुंज, भोज, सिद्धराज, कुमारपाल जैसे राजाओं और वस्तुपाल, तेजपाल, जगडू आदि अमात्यों के चरित्र लिखे गये हैं। १४ वीं शताब्दी में उसी प्रकार की महान रचना 'प्रबन्धचिन्तामणि' है जिसमें शालिवाहन, वनराज इत्यादि चावडा राजाओं, मूलराज, मुंज, भोज आदि अन्य राजपूत राजाओं का विस्तृत एवं प्रामाणिक वर्णन मिलता है । इतिहास के साथ तत्कालीन सामाजिक गतिविधियों का यह प्रामाणिक दस्तावेज है । आधुनिक विद्वान् इसे राजतरंगिणी के ढंग की विश्वसनीय रचना मानते हैं । गुजरात के इतिहास के लिए तो यह एक अकेला ग्रन्थ ही पर्याप्त है। इसके प्रथम सर्ग विक्रमांक प्रबन्ध में बेताल, महाकवि कालिदास, परकायप्रवेश विद्या और सिद्धसेन दिवाकर आदि से सम्बन्धित कथायें हैं। दूसरे सर्ग में भोज तथा भीम प्रबन्ध है जिसमें माघ, धनपाल, मयूर, वाण और मानतुंग आदि महान् लेखकों का उल्लेख है । तीसरे सर्ग में सिद्धराज प्रबन्ध है जिसमें मीनलदे, हैमव्याकरण, रामचन्द्र, जयमङ्गल आदि का विवरण है। चौथे सर्ग में कुमारपाल प्रबन्ध और वस्तुपाल तेजपाल का जीवनवृत्त भी है। इसके पांचवें सर्ग में कई स्फुट प्रवन्ध कथायें हैं जिनमें परमदि, पृथ्वीराज, भर्तृहरि, वाग्भट्ट, आदि का उल्लेख है । इस प्रकार यह तत्कालीन इतिहास का विश्वकोष है। इसमें अपभ्रंश के मुक्तक और कहीं-कहीं मरुगुर्जर के पद्य-दोहे आदि भी मिल जाते हैं। यद्यपि मरुगुर्जर साहित्य की दृष्टि से इसका उतना महत्त्व नहीं है किन्तु जैन साहित्य में इसका अप्रतिम स्थान होने के कारण इसका यहाँ उल्लेख आवश्यक था। भाषा के सन्दर्भ में इसके दोहे उद्धत किए जा चुके हैं इसलिए यहाँ दुहराने की आवश्यकता नहीं है। मरुगूर्जर की रचना न होते हए भी इसमें तत्कालीन मरुगुर्जर की भाषिक स्थिति की अच्छी झलक मिलती है, अतः इस विश्वविख्यात रचना का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। मुनि जिनविजय और श्री हरिवल्लभ भयाणी ने इसका सम्पादन करके इसे भारतीय विद्याभवन, बम्बई से प्रकाशित कराया है । इसके अतिरिक्त इस रचना के अन्य संस्करण भी प्रकाशित हैं। 'विचारश्रेणिस्थविरावली' आदि इनकी अन्य रचनायें भी प्राप्त हैं किन्तु वे सभी अपभ्रंश या प्राकृत से सम्बन्धित हैं, अतः मरुगुर्जर साहित्येतिहास में उनका विवरण आवश्यक नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy