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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य १८३ रेवंतगिरि रलियामणउ सोह र सुखर सार, भविया भाविहि पणभयउ जिम पामउ भवपार ।१४। सालिभद्रकक्क में शालिभद्र के संयमश्री धारण करने की सुन्दर ढंग से चर्चा की गई है। इस रचना में रचनाकार का समय तथा उसकी गरुपरम्परा आदि नहीं दी गई है। इसमें शालिभद्र द्वारा अपनी माता से संयम ग्रहण करने के लिए आग्रह और माँ द्वारा उसकी कठिनाइयाँ बताकर उन्हें इससे विरत रखने का प्रसंग बड़ा मार्मिक है। इसकी भाषा में गजराती शब्दरूप अधिक मिलते हैं। इसका प्रारम्भिक पद्य द्रष्टव्य है 'मलि मंजणु कम्मारिबल वीरनाहु पणमेवि, पउम भणइ कक्क करिण सालिभद्द गणकेइ। 'गारव वज्जिय विन्नवउं मग्गउ माइ। जइ मोकलउं तउ व्रतु लियउ तुम्हइ पाय पसाइं।' इसमें 'मोकलउ' गुजराती शब्द और जइ, तइ आदि अन्य प्रयोग द्रष्टव्य हैं। इसमें प्रत्येक दोहा वर्णमाला के अक्षर क्रम से चलता है और कृति की समाप्ति 'क्ष' से आरम्भ होने वाले दोहे से हुई है । इसमें कुल ७१ छन्द हैं। अन्तिम छन्द इस प्रकार है :-- 'इह कहियउ कक्कह कुलउ इकहत्तरि कडुयाह, भवियउ संजमु मणि धरउ पढ़हु गुणहुँ निसुणेहु ।७१। इसकी तीसरी कृति 'दूहामातृका' में कुल ५७ दोहे हैं । इन दोहों द्वारा धर्म सम्बन्धी उपदेश दिया गया है। इसके प्रथम दोहे में जिनवंदना है, यथाः 'भले भले विण जगत गुरु पणमउं जगह पहाण । जासु पसाइं मूढ़ जिय पावइ निम्मल नाणु ।' और अन्तिम दोहा इस प्रकार है 'मंगल महासिरि सरिसु सिवफल दायकु रम्म । दूहामाई अक्खियइ पउमिहिं जिणवर धम्मु ।' ५७ ।' कवि शरीर की क्षण भंगुरता का संदेश देता हुआ लिखता है 'उप्पल दल जलविदु जिव तिव चंचलु तणु लच्छि, धणु देखता गाइस ए दइ मन मेलत अच्छि ।' १. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह पृ० ६३ २. वही पृ. ६७ ३. वही प० ७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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