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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
प्राचीन मरुगुर्जर है जिसमें यत्रतत्र अपभ्रंश के शब्द प्रयोग मिले जुले हैं । भाषा के नमूने के लिए कुछ पंक्तियाँ आगे उद्धृत की जा रही हैं। पहले इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :
'सहज सलूणड़ी नारि मिलीअस तेवड़ तेवड़ीए । राउला घर बारि, नेमिकुमार वर जोयतीए |१| पूच्छड पूच्छइ राजकुमारि कहिन बहिन बर किमु हुउ ए । सणउतम्हि सहिय विचारि, जिण परिवर मई पामिउ ए ।"
इसके अन्तिम पद्य में कवि ने अपने नाम के साथ मंत्रि शब्द का प्रयोग स्वयम् किया है; किन्तु विशेष विवरण ज्ञात नहीं हो सका है ।
इण परि नेमि कुमार, गुण गाई सवि कामिणी ए ।
राणीय राजिमती भत्तार, मंत्रि धारिसिंघ स्वामिणी ए ।
पद्म या पउम
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- आप १४वीं शताब्दी के उत्तम कवियों में गिने जाते । आपकी तीन रचनायें - ( १ ) नेमिनाथफागु सं० १३७०, (२) सालीभद्र कक्क और (३) दूहामातृका - प्रकाशित हैं । इनमें से नेमिनाथफागु तो प्राचीन फागु संग्रह में प्रकाशित है और दो रचनायें 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' में प्रकाशित हैं ।
नेमिनाथफागु का प्रारम्भ वंदना - मंगल चरण के बाद वसंत ऋतु के वर्णन से किया गया है और १०वीं कड़ी तक वह चलता है । ११वीं कड़ी में कवि राजुल और नेमि का संक्षिप्त उल्लेख करके फागु समाप्त कर देता हैं । वसंत ऋतु में गुर्जर देश की रमणी की शोभा का शृंगारिक रूप वर्णन करता हुआ कवि पद्म कहता है :
'पीण पयोहर अपच्छर गूजर धरतोय नारि, फागु खेलइ ते फरि फरि नेमि जिणेसर बारि ।
सिरि सींदूरीय सयथलउ भमरमाला जिसी वाणी, फागु खेलइ मन रंगिहि हंसगमणि मृगनयणि । 2
फाग का अन्तिम छन्द द्रष्टव्य है जिसकी भाषा सरल एवं संगीतमय है'हंस सरोवर जिम मिल्या महुयर जिम बणराय,
पउम भणइ तिम सामिअ चलणे भुज्झ मनु जाय ।'
१. श्री अ च० नाहटा - म० गु० जैन कवि पृ० ५५
२. प्राचीन फागु संग्रह पृ० ५३ और जै० गु० क० भाग १ पृष्ठ ११ तथा भाग ३ पृष्ठ ४०६
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